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प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन
१. रचना-काल व स्थान
उक्त राजनीतिक व साहित्यिक पृष्ठभूमि में राजशेखर ने अपने ग्रन्थों की रचना की थी। उसने प्रबन्धकोशान्तर्गत ग्रन्थकार-प्रशस्ति में लिखा है कि 'शरगगनमनुमिताब्दे' में ज्येष्ठ मास मूल नक्षत्र शुक्लपक्ष की सप्तमी के दिन यह शास्त्र रचा गया। यहाँ पर ग्रन्थरचना की तिथि शब्दों में दी गयी है। 'शरगगनमनुमिताब्दे' को भारतीय तिथि-शैली के अनुसार दिया गया है और इसे विपरीत क्रम से पढ़ने पर संवत् १४०५, तदनुसार १३४८-४९ ई० की तिथि प्राप्त होती है। 'मिताब्दे' का अर्थ हआ संवत्सर, मन हुए १४, गगन का गणितार्थ हआ ० और शर का प्रयोग ५ के लिये हुआ है। अतः प्रबन्धकोश की रचना का समय वि० सं० १४०५ है। इससे बढ़कर राजशेखर ने ग्रन्थ-रचना के स्थान के सम्बन्ध में यह महत्वपूर्ण सूचना दी है कि महणसिंह ने अपना आवास देकर दिल्ली में इस ग्रन्थरत्न को सम्पन्न कराया। अतः प्रबन्धकोश की रचना का स्थान मुस्लिम शासकों की राजधानी दिल्ली नगर था। ____ यदि ब्राह्मण कल्हण ने कश्मीर में और जैनसूरि मेरुतुङ्ग ने जैनबहुल प्रान्त गुजरात में इतिहास रचा तो इतिहासज्ञ राजशेखरसूरि ने जैन होते हुए भी मुस्लिम बहुल प्रदेश की राजधानी दिल्ली में प्रबन्धकोश का जिस साहस से प्रणयन किया वह कम स्तुत्य नहीं है । २. शीर्षक
ग्रन्थकारों को अपने ग्रन्थों का नाम ऐसा रखना चाहिए कि शीर्षक स्वयं उनके ग्रन्थों की विषयवस्तु और मुख्य विचारधारा को स्पष्ट कर दे। कभी-कभी शीर्षक ग्रन्थों की प्रकृति पर भी प्रकाश डालते हैं। राजशेखर ने अपने ग्रन्थ का शीर्षक विशेष सावधानी से रखा है।
उसके इस ग्रन्थ को अब तक अनलिखित चार विभिन्न नामों से जाना जाता है।
१. "शरगगनमनुमिताब्दे ज्येष्ठामूलीयधवलसप्तभ्याम् ।
निष्पन्न मिदं शास्त्रम् ... ... ... ... ॥" प्रको, प० १३१॥ २. .... ..." महणसिंहः । ढिल्ल्यां स्वदत्तवसतौ ग्रन्थमिमं कारयामास ॥"
प्रको, पृ० १३१ ।
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