SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ग्रन्थ-परिचय बुद्दीन ने विद्वानों एवं कवियों के प्रति उदारता का व्यवहार किया जिससे उसे 'लाखबख्श' की उपाधि से विभूषित किया गया। इल्तुतमिश के दरबार में ख्वाजा आबू नस्र ( नासरी ), मुहम्मद रुहानी, नरूद्दीन मुहम्मद औफी इत्यादि को आश्रय प्राप्त हुआ था। औफी ने 'लुबाबुल अलबाब' और 'जवामेउल हिकामातवा लवामी उररिवायात' नामक ग्रन्थ लिखे। नासिरुद्दीन के दरबार में फखरुद्दीननूनाकी, अमिद और मिनहाजुससिराज प्रमुख विद्वान थे। अमीर खुसरो नासिरुद्दीन के शासनकाल में भारत आया। उसने दासवंश, खल्जी और तुगलक वंश के ११ सुल्तानों को अपने जीवनकाल में गद्दी पर बैठते और उतरते देखा। बलबन के समय में खुसरो और मीर हसन देहलवी को संरक्षण प्राप्त हुआ था। खुसरो ने विभिन्न विषयों पर ९९ ग्रन्थों की रचना की। विद्या के महान संरक्षक मुहम्मद बिन तुगलक ( १३२५-५१ ) के शासनकाल में इब्नबतूता भारत आया और जियाउद्दीन बरनी १७ वर्षों से अधिक उसके राजदरबार से सम्बन्धित रहा। उसका प्रसिद्ध इतिहास-ग्रन्थ 'तारीख-ए-फीरोजशाही' है। 'सनाये मुहम्मदी', 'इनायतनामाये इलाही', 'हसरतनामा' आदि अन्य प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं। बद्रुद्दीन मुहम्मद चाच ने दीवाना और शाहनामा तथा इसामी ने 'फुतुहुस्सलातीन' लिखा। लगभग इसी समय जैन प्रवन्धकारों ने भी अनुश्रुतियों और परम्पराओं के आधार पर ऐतिहासिक वृत्तान्तों का संग्रह सम्पन्न किया। जैन विद्वानों को लेखन कार्य में साधुवर्ग और समाज की ओर से अनेक सुविधाएँ प्राप्त थीं। इस काल का जैन-धर्म अधिकांश व्यापारिक वर्ग के हाथ में था। दक्षिण और पश्चिम भारत में धनी व्यापारिक वर्ग के संरक्षण में जैन-धर्म बड़ा ही फला-फला। दिल्ली, आगरा और अहमदाबाद के कई जैन परिवारों का उनके व्यापारिक सम्बन्धों एवं विशाल धनराशि के कारण, दरबारों में बड़ा प्रभाव था। अतः इन राजनीतिक, सामाजिक व साहित्यिक परिस्थितियों में प्रभाचन्द्र रचित 'प्रभावकचरित', मेरुतुङ्ग कृत 'प्रबन्धचिन्तामणि' व 'विचारश्रेणी', जिनप्रभसूरि विरचित 'विविधतीर्थकल्प' और राजशेखरसूरि प्रणीत 'प्रबन्धकोश' ने प्रसिद्धि प्राप्त की। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy