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________________ २६ प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन फलस्वरूप मानव-मस्तिष्क में वेदों की मान-प्रतिष्ठा बढ़ी। अतः मानव साहित्य की ओर पुनः झुका और श्रेष्ठ धार्मिक एवं इतिवृत्तात्मक साहित्य का सृजन हुआ। इस शताब्दी में ब्राह्मण धर्म का पुनरुद्धार, बौद्ध-धर्म का अपनी जन्मभूमि से लोप और जैन-धर्म का भारत के केवल एक भाग गुजरात और राजपूताने में परिसीमन हो रहा था। विजयनगर, वारंगल और गुजरात के हिन्दू शासकों ने संस्कृत के विकास के लिए अवश्य योगदान किया। कुछ अंश तक दक्षिण भारत में भक्ति आन्दोलन के कारण भी संस्कृत का विकास हुआ। इस युग के भारत ने संस्कृत साहित्य की विभिन्न विधाओं में हास को देखा। साहित्य का सामान्य व्यक्ति से सम्पर्क टूट गया। साहित्य पण्डितों और राजसभाओं तक सीमित रह गया। साहित्य और सामान्यजन के बीच में एक विस्तृत अन्तराल पैदा हो गया। राजवंशों के शासक संस्कृत-विद्या को प्रोत्साहन देने लगे। इस युग का साहित्य पुरानी लीक पर चला, जिसमें प्रेरणा और मौलिकता का अभाव था। ऐतिहासिक काव्यों की रचना हुई लेकिन संस्कृत में ऐतिहासिक कृतियों की कम रचना हुई। कश्मीरी पण्डित बिल्हण ने 'विक्रमांकदेवचरित' लिखा और कल्हण ने 'राजतरंगिणी'। जैन लेखकों ने भी संस्कृत साहित्य के क्षेत्र में अपनी योग्यता सिद्ध की, जिनमें हेमचन्द्र का नाम अति प्रसिद्ध है। वह कुमारपालचरित में चालुक्य कुमारपाल की जीवनी का वर्णन करता है। यह द्वयाश्रय काव्य भी कहा जाता है। १२वीं शताब्दी के अन्त में जयानक ने पृथ्वीराजविजय लिखी जो चाहमान पृथ्वीराज तृतीय की शिहाबुद्दीन गोरी पर विजयों का वर्णन करता है। १३वीं शताब्दी में सोमेश्वर रचित कीर्तिकौमुदी और अरिसिंह कृत सुकृतसंकीर्तन गुजरात के बघेल राजाओं के मन्त्री वस्तुपाल की प्रशंसा में रची गयी । उदयप्रभसूरि ने सुकृतकीर्ति-कल्लोलिनी नामक काव्य वस्तुपाल के सम्बन्ध में लिखा। बालचन्द्रसूरि का वसन्तविलास गुजरात के शासकों पर एक प्रसिद्ध ग्रन्थ है। ___इस साहित्यिक पृष्ठभूमि में मुस्लिम साहित्यकारों एवं इतिवृत्तकारों का योगदान और राजकीय संरक्षण भी उल्लेखनीय है। कुतु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org -
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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