SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ग्रन्थ- परिचय [ २५ मध्यकालीन राजवंशों जैसे - गंग, कदम्ब, चालुक्य और राष्ट्रकूटों ने जैनों को प्रश्रय दिया । तुर्की आक्रमणों के बाद दास और खिल्जी राजवंशों का शासन हुआ । भारतवर्ष के तुर्की राज्य में हिन्दू कर्म - चारियों को प्रशासन से पृथक् नहीं रखा जा सकता था क्योंकि ऐसा करने से प्रशासनिक व्यवस्था ही समाप्त हो सकती थी और देश में अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो जाती । फिर भी राजवंशीय परिवर्तन द्रुतगति से होने लगे । तुगलक शासन के समय भी दक्षिण में विजयनगर का हिन्दू राज्य अत्यन्त शक्तिशाली हो गया था मुहम्मद बिन तुगलक ( १३२५-५१ ई० ) के शासन काल में रतन, भैरो और धराधर अधिक से अधिक उन्नति करके प्रान्तीय वज़ीर के पद पा सके । फलतः धर्मनिरपेक्ष राजनीति में वह अलाउद्दीन से बहुत आगे बढ़ गया था इसके अतिरिक्त मुहम्मद तुगलक सत्य की खोज में योगियों की संगति करता था और दर्शन समझने के लिए उसने संस्कृत भी सीख ली थी । इब्नबतूता ने लिखा है कि एक बार मुहम्मद तुगलक ने एक हिन्दू को १७ करोड़ में दौलताबाद का ठेका दिया था । उसने समरसिंह को तेलंगाना का सूबेदार बनाकर भेजा था । उसने जिनप्रभसुरि, राजशेखरसूरि, महेन्द्रसूरि, सोमप्रभसूरि और सोमतिलकसूरि के प्रति उदारता दिखलायी थी । अतः मुहम्मद तुगलक के शासनकाल में हिन्दुओं को अधिक सम्मान मिला, जिसको देखकर अन्य दरबारियों को ईर्ष्या होने लगी । उपर्युक्त राजनीतिक पृष्ठभूमि का साहित्यिक क्रिया-कलापों पर प्रभाव पड़ना अवश्यम्भावी था । इस युग में आस्तिकता की प्यास अत्यधिक थी । शंकर का दर्शन वेदान्त का चरमोत्कर्ष था जिसके १. ईश्वरी प्रसाद : भारतीय मध्ययुग का इतिहास, इलाहाबाद, १९५५, पु० ५१५ | मध्यकालीन योरोप की भांति हिन्दुस्तान के लोग भी मन्त्रतन्त्र, चमत्कार आदि में विश्वास करते थे और मुहम्मद तुगलक भी हिन्दू जोगियों में चमत्कार देखा करता था ( वही पृ० ५१७ ) । २. शेठ, सी० बी० : जैनिज़्म इन गुजरात, पृ० १९१; प्रोसीडिंग्स ऑफ इण्डियन हिस्टरी कांग्रेस, १९४१, पृ० ३०१-३०२; हुसैन, आगा मेहदी : तुगलक डायनेस्टी, कलकत्ता, १९६३, पृ० ३१५ व ३२२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy