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प्रबन्धकार की जीवनी व कृतित्व
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गये। राजुल ने दूसरा विवाह नहीं किया और नेमिनाथ के भक्तिपूर्ण विरह में समूचा जीवन व्यतीत कर दिया।
प्रबन्धकोश १३४८-४९ ई० में रचा गया था, जिस पर राजशेखर की ख्याति टिकी है । अन्त में राजशेखर को 'शान्तिनाथचरित' के संशोधन का भी श्रेय दिया जाता है। 'शान्तिनाथचरित' संस्कृत में बृहद्गच्छ के गुणभद्रसूरि के शिष्य मुनिभद्र द्वारा लिखा गया था। यह १९ काण्डों में है जिसमें लगभग ५००० श्लोक हैं। यह बनारस से प्रकाशित है। राजशेखर ने १३५२-५३ ई० में शान्तिनाथचरित का संशोधन किया था। ___ इस प्रकार राजशेखर की दीर्घकालिक जीवनी और विशाल कृतित्व ने भारत के अनेक भागों में एक नवीन विचारधारा प्रवाहित की-"ते नर वर थोरे जग माहीं।" चूंकि उन्होंने उस धारा का स्वच्छ जल मध्यकालीन समाज के लिए सुगम करा दिया, इसलिये भी वे हमारी अभ्यर्थना के अधिकारी हैं। राजशेखर की इन कृतियों से उनकी जीवनी के बहुमुखी पक्षों का उद्घाटन होता है। वह एक लेखक, संशोधक, टीकाकार, कवि, दार्शनिक और इतिहासकार था। अगले अध्याय में इसके प्रमुख ग्रन्थ प्रबन्धकोश का परिचय दिया जायेगा।
१. जिरको, पृ० ३८०, शास्त्री, नेमिचन्द्र : संस्कृत काव्य के विकास में जैन
कवियों का योगदान, भा० ज्ञा० पी० प्रकाशन, दिल्ली, १९७१, पृ. , २१४ ।
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