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किंचित विचार व्यक्त किये हैं । "
कात्यायन के ' कातन्त्रव्याकरण' के आधार पर आचार्य राजशेखरसूरि ने 'वृत्तित्रय निबन्ध' नामक ग्रन्थ की रचना की है, ऐसा उल्लेख 'बृहट्टिप्पणिका' में है । '
प्रबन्धकौश का ऐतिहासिक विवेचन
जिन - रत्न - कोश में 'चतुरशीतिकथा' और 'दानपट्त्रिंशिका' की रचना का श्रेय भी राजशेखर को दिया गया है किन्तु ये ग्रन्थ अभी तक उपलब्ध नहीं हो सके हैं । एक अन्य टीका 'रत्नाकरावतारिकापञ्जिका' के रचने का श्रेय भी उसे दिया जाता है । 'रत्नाकरावतारिका' पूर्णिमा गच्छ के गुणचन्द्र के शिष्य ज्ञानचन्द्रसूरि द्वारा लिखा गया था, जिस पर राजशेखर ने सम्भवतः टिप्पण लिखा । परन्तु राजशेखर का एक काव्य 'नेमिनाथ फागु' ऐसा है जो पुरानी हिन्दी में रचा गया है |
मो० दु० देसाई ने 'नेमिनाथ फागु' का रचनाकाल वि० सं० १४०५ (१३४८ ई० ) के लगभग स्वीकार किया है । हिन्दी के २७ पद्यों के छोटे काव्य 'नेमिनाथ फागु' में २२ वें तीर्थङ्कर नेमिनाथ और राजुल की कथा का काव्यमय निरूपण हुआ है ।" नेमिनाथ कृष्ण के छोटे भाई थे । जूनागढ़ के राजा उग्रसेन की कन्या राजमती ( राजुल ) के साथ उनका विवाह निश्चित हुआ । बारात गयी, किन्तु भोज्य पदार्थ बनने के लिए एकत्र किये गये पशुओं के क्रन्दन से दयार्द्र होकर उन्होंने वैराग्य ले लिया । वे गिरिनार पर तप करने चले
१. 'श्री मलधारीगच्छसम्प्रदायागतस्य श्रीसूरिमन्त्रस्य किंचिदिचारों लिख्यते ।' सूरिमन्त्र नित्यकर्म, शाह डायाभाई महोक मलाल, अहमदाबाद,
१९३०, पृ० १ ।
२. जैसाबुइति भाग ५, पृ० ५३ ।
३. देसाई, मोहनलाल दुलीचन्द्र जैन गुर्जर कविओं, भाग १० बम्बई, १९२५, पृ० १३ पादटिप्पणी ।
४. सिद्धि जेहि सइ वर चरिअ ते तित्थयर नमेवी । फागुबंधि बहु नेमि जिणु गुण गाएसउ केवी ॥ राजल देविसउं सिक्षि गएउ सो देउ घुणीजई । मलहारिहि रायसिहर किउ फागु रमी जई ।
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