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________________ प्रबन्धकार की जीवनी व कृतित्व [ २१ आठवें अध्याय पर मलधारि उपाध्याय नरचन्द्रसूरि ने अवचूरि रूप 'प्राकृत-प्रबोध' ग्रन्थ की रचना की है। आचार्य जिनप्रभसूरि ने राजशेखरसूरि की 'न्यायकन्दली' में और रुद्रपल्लीय संघतिलकसूरि की १३६५ ई० में रचित 'सम्यक्त्वसप्ततिवृत्ति' में भी सहायता की थी। १३३० ई० में राजशेखरसूरि ने हेमचन्द्रकृत 'प्राकृत द्वयाश्रयकाव्य' पर एक वृत्ति लिखी । चौथा ग्रन्थ स्याद्वादकलिका है। इसमें ४१ श्लोक हैं। यह हीरालाल हंसराज जामनगर द्वारा (युक्तिप्रकाश और अष्टक के साथ ) प्रकाशित है। राजशेखर विरचित 'षड्दर्शनसमुच्चय' यशोविजय जैन ग्रन्थमाला के १७वें पुष्प के रूप में वाराणसी से प्रकाशित है। इसमें मात्र १८० पद हैं। निजगुरु का भक्तिपूर्वक स्मरण कर राजशेखर ने इस ग्रन्थ की रचना शुरू की है। इसमें जैनदर्शन, सांख्य, जैमिनीय, शैव, वैशेषिक और बौद्ध दर्शनों के परीक्षण किये गये हैं। षड्दर्शनसमुच्चय के २९वें पद में 'सिद्धान्तसार' नामक ग्रन्थ का उल्लेख आया है, जो किसी जैन लेखक द्वारा तर्कशास्त्र पर लिखा हआ एक बड़ा कर्कश ( कठिन ) ग्रन्थ है।' यह कृति राजशेखर की जीवनी के दार्शनिक पक्ष का निरूपण करती है। सुभाषित और सूक्ति के रूप में जैन मनीषियों की प्राकृत और संस्कृत में अनेक रचनाएँ मिलती हैं। जैसे प्राकृत में धर्मदासगणि कृत उपदेशमाला एवं हेमचन्द्राचार्य का योगशास्त्रप्रकाश तथा संस्कृत में अमितगति का सुभाषितरत्नसन्दोह। राजशेखर कृत 'उपदेशचिन्तामणि' इसी परम्परा में संस्कृत में रची गयी है। ___'सूरिमन्त्र नित्यकर्म' नामक ग्रन्थ में मलधारी गच्छ के सम्प्रदाय के लिये विहित नित्यकर्म के सूरिमन्त्र हैं। राजशेखर ने इनसे सम्बन्धित १. लेक्सिको, पृ० ४१ । २. सिद्धान्तसार इत्याद्यास्ताः परमकर्कशाः । तेषां जयश्रीदानाय प्रगल्भन्ते पदे पदे ।। षड्दर्शनसमुच्चय, पद २९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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