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________________ १८] प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन जिस तरह जिनप्रभसूरि ने मुहम्मद तुगलक के दरबार में गौरव प्राप्त किया, उसी तरह राजशेखर ने भी प्रधानतया दिल्ली में निवास करने के कारण दिल्ली के इस सुल्तान पर अपना प्रभाव छोड़ा होगा, क्योंकि मुहम्मद तुगलक बहुश्रुत था और राजशेखर मुहम्मद तुगलक का समकालीन भी था । सूरिपद प्राप्त कर लेने से राजशेखरसूरि की प्रस्थिति में अभिवृद्धि हुई । ऐसी स्थिति के अनुरूप जो भूमिका उन्होंने अदा की वह जैनइतिहास में सदा स्मरणीय रहेगी । राजशेखर ने दिल्ली में रहकर जगत् सिंह के पुत्र साह महणसिंह की प्रेरणा से वि० सं० १४०५ ( लगभग १३४९ ई० ) में चतुर्विंशति - प्रबन्ध ( प्रबन्धकोश ) की रचना की थी । यहाँ घटना में एक आश्चर्यजनक साम्य देखने को मिलता है । जिनप्रभ ने १३२८ ई० में दिल्ली में रहकर 'राजप्रासाद' नामक शत्रुञ्जय कल्प की रचना की और राजशेखर ने भी ठीक बीस वर्ष बाद उसी दिल्ली में प्रबन्धकोश की रचना की । इतिहास स्वयं को दुहराता है । राजशेखर की रुचि संगीत की ओर भी थी क्योंकि उसका शिष्य सुधाकलश संगीतशास्त्र का प्रकाण्ड विद्वान् निकला । सुधाकलश ने १३४९ ई० में 'संगीतोपनिषत्सारोद्धार' की रचना की है। इस ग्रन्थ की प्रशस्ति में सुधाकलश ने सूचित किया है कि स्वयं उसके द्वारा १३२३ ई० में रचित 'संगीतोपनिषद्' का यह ग्रन्थ साररूप है । 'संगीतोपनिषत्सारोद्धार' में छ: अध्याय क्रमशः गीत, ताल, स्वरराग, वाद्य, नृत्यांग और नृत्यपद्धति के प्रकाशन हैं । इसमें कुल ६१० श्लोक हैं । राजशेखर ने प्रबन्धकोश में गायन-वादन का यथेष्ट उल्लेख किया है । जिनालयों में वाद्य यन्त्र का घोष होता था । राजशेखर को विभिन्न वाद्य यन्त्रों का ज्ञान था जिससे इसकी पुष्टि हो जाती है । पणव (ढोल ), मृदङ्ग, वीणा, वेणु ( वंशी ) प्रभृति वाद्य यन्त्रों के कई बार उल्लेख आए हैं। राग वसंत और राग आन्दोलक के वर्णन १. दे० प्रको, पृ० १३१ ओझा, हीराचन्द्र कवि राजशेखर का समय, ना० प्र० पत्रिका, भाग ६, पुं० ३६२ टि० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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