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प्रबन्धकार की जीवनी व कृतित्व
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गुजरात से निकलकर इन प्रदेशों का भ्रमण नहीं कर सकता था ?
राजशेखर मलधारि गच्छ के थे । राजशेखर के व्यापक अध्ययन, विविध विद्याओं की जानकारी एवं बृहद् भ्रमण ने उसे सूरि-पद के योग्य बना दिया होगा । उसे कब सूरि-पद प्रदान किया गया इसका पता नहीं चलता । मुहम्मद तुगलक ने जिनप्रभसूरि का दिल्ली दरबार में स्वागत १३२८ ई० में किया था । "उस सत्कार के समय मलधारगच्छीय राजशेखर अथवा अन्य कोई राजशेखर उनके साथ हो ऐसा कोई प्रमाण प्राप्त नहीं है । अतः सम्भावना इस बात की है कि १३२८ ई० के पश्चात् ही राजशेखर को सूरि-पद प्राप्त हुआ होगा ।
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मुहम्मद बिन तुगलक कट्टर मुसलमानों की तरह इस्लाम धर्म का पालन नहीं करता था, क्योंकि वह अहलेमाकुलत ( विवेकवाद ) का हिमायती था न कि अहलेमनकूलत ( परम्परावाद ) का | १३२८ ई० में सुल्तान ने जैन विद्वान् जिनप्रभसूरि का और १३३३ ई० में अरबी विद्वान् इब्नबतूता का दिल्ली दरबार में सम्मान किया था । मुहम्मद तुगलक ने जैन विद्वान् को अपने समीप बैठाया, ऐश्वर्य प्रदान करना चाहा, बसाडी उपाश्रय के निर्माण का फरमान प्रेषित किया तथा सूरि को गजारूढ़ कराकर एक शोभायात्रा निकलवायी । इस सत्कार से दो तथ्य उभड़कर सामने आते हैं । एक तो सूरि के साथ उनके अन्य शिष्य भी सम्मानित हुए होंगे जिनमें राजशेखर भी रहा होगा, क्योंकि उनके दीर्घकालीन दिल्ली - प्रवास और वहीं प्रबन्ध रचना से इसकी पुष्टि होती है । दूसरे आधुनिक दृष्टिकोण से सुल्तान के चरित्र में इसे एक विशिष्ट गुण मानना चाहिये कि वह अपने युग की धर्मान्धता से ऊपर उठ सका ।
१. दे० प्रको,
पृ० ७ १३१ ।
२. विनयसागर, महोपाध्याय, निदेशक प्राकृत भारती अकादमी, लेखक को लिखे पत्र क्रमांक ४५२ दिनांक
जयपुर द्वारा २४-९-९१ का उद्धरण । प्रोसीडिंग्स् ऑफ द इ० हि०
३. इस्लामिक कल्चर, बीसवाँ, पृ० १३९
कांग्रेस, पाँचवाँ, पृ० २९६ मदनगोपाल ( अनु० ) : इब्नबतूता की भारत यात्रा, काशी विद्यापीठ, वाराणसी, १९३१, पृ० १ ।
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