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________________ १६ ] प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन हेमविद्या तथा हेमसिद्धि विद्या। अतः आन्तरिक साक्ष्यों से प्रतीत होता है कि राजशेखर को कम-से-कम इन विद्याओं के विषय में प्रारम्भिक जानकारी अवश्य रही होगी। राजशेखर अभयदेवसूरि की परम्परा में हुए हैं। अभयदेव नाम के सात सूरिवर भिन्न-भिन्न गच्छों में हो चुके हैं। किन्तु राजशेखर की गुरु-परम्परा वाले अभयदेव हर्षपुरीय गच्छ के सूरि थे जिनका समय १२वीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध माना जाता है। अभयदेवसूरि तो राजशेखर के आध्यात्मिक पूर्वज थे। इन्हीं अभयदेव की परम्परा में तिलकसरि हुए । राजशेखर, तिलकरि के शिष्य थे। __ प्रबन्धकोश के अवलोकन से ज्ञात होता है कि राजशेखर को इतिहास और पर्यटन से बड़ा प्रेम था। उन्होंने अपने जीवन में भारत के बहुत से भागों में परिभ्रमण किया था। ऐसा प्रतीत होता है कि गुजरात, राजपूताना, मालवा, मध्यप्रदेश, दक्षिण भारत, कर्णाटक, तेलंगाना, उत्तर भारत, दिल्ली प्रदेश, बंगाल-बिहार आदि के अनेक पुरातन एवं प्रसिद्ध स्थानों की उन्होंने यात्रा की थी। इन राज्यों में पड़ने वाले स्थानों के नाम ग्रन्थ में अनेक बार आये हैं जिनकी अकारादिक्रमानुसार सूची आगे दी हुई है । स्थल-भ्रमण के समय विभिन्न स्थानों के विषय में जो भी इतिहासगत और परम्पराश्रुत बातें उन्हें ज्ञात हुईं, उनको उन्होंने संक्षेप में लिपिबद्ध कर लिया और इस तरह उन स्थानों का सटीक वर्णन किया अल्बीरूनी ने लिखा है कि सोमनाथ के पूजन के लिए नित्य कश्मीर से पुष्प और गंगा से जल आता था। तो क्या राजशेखर १. मुनि चतुरविजय ( सम्पा० ) : जैन स्तोत्र-सन्दोह, प्रथम भाग, प्रस्तावना, अहमदाबाद, १९३२, पृ० २१ । २. चागु, प० ६५ । ३. दे० परिशिष्ट ३ । ४. मिश्र, जयशंकर : ग्यारहवीं सदी का भारत, वाराणसी, १९६८, पृ० १८३-१८४; दे० वही लेखक : प्रा० भा० का सा० इति०, बिहार हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, पटना, १९७४, पृ० ६३७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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