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________________ प्रबन्धकार की जीवनी व कृतित्व [१५ जैन आगमों के अनुसार गच्छ-दीक्षा का पात्र वही व्यक्ति है, जो किसी का उपदेश सुनकर, अपने स्वतन्त्र चिन्तन से संसार की असारता के प्रति दृढ़विश्वासी हो जाता है और जिसमें शाश्वत-सुख ( मोक्ष ) की तीव्र उत्कण्ठा हो जाती है। अतः गच्छ-वृद्धि की दीक्षा के बाद राजशेखर ने अध्ययन शुरू कर दिया होगा। प्रबन्धकोश के आन्तरिक साक्ष्यों एवं अन्य उपलब्ध टीकाओं से ज्ञात होता है कि राजशेखर का अध्ययन बड़ा व्यापक था। प्रबन्धकोश में उसने जैन-आगम-ग्रन्थों ( सूत्रों ) हरिभद्र के ग्रन्थों, लौकिक साहित्य ग्रन्थों, पूर्ववर्ती जैनचरितों व जैन प्रबन्धों, जैनेतर महाकाव्यों, पुराणों एवं ग्रन्थों के स्थान-स्थान पर उल्लेख किये हैं। राजशेखर ने इनमें से कुछ का मंथन, कुछ का अध्ययन और आलोड़न अवश्य किया होगा। राजशेखर ने स्वरचित 'न्याय-कन्दली' पञ्जिका में जिनप्रभसरि को अपने अध्यापक के रूप में स्मरण किया है। उसी प्रकार रुद्रपल्लीय गच्छ के संघतिलक सूरि ने भी सम्यक्त्वसप्ततिकावृत्ति में जिनप्रभसूरि को अपना विद्यागुरु बतलाया है। इसी प्रकार १२९२ ई० में नागेन्द्रगच्छ के मल्लीषणसूरि ने अपनी स्याद्वादमञ्जरी में जिनप्रभसूरि द्वारा प्राप्त सहायता का उल्लेख किया है। ऐसा प्रतीत होता है कि जिनप्रभसूरि इस प्रकार के उदीयमानों को अपने अधीन पठन-पाठन का अवसर देते रहते थे। स्वयं राजशेखर ने उनसे 'न्याय-कन्दली' ग्रन्थ का अध्ययन किया था। सम्भवतः उसके बाद ही उसने उक्त ग्रन्थ पर पञ्जिका लिखी हो। राजशेखर ने प्रबन्धकोश के विभिन्न स्थलों में ग्यारह विद्याओं के नाम गिनाएँ हैं और उनके प्रयोग के भी उल्लेख किये हैं, जैसे- गगनगामिनीविद्या, गर्दभी विद्या, चक्रेश्वरी, त्रैलोक्यविजयिनी, परकायप्रवेश विद्या, जैन गायन, मातुलिङ्गी, सञ्जीवनी विद्या, सर्षपविद्या, रानी हूण राजपुत्री हरीयदेवी के नाम से बसाया गया । वहाँ के जैनसंघ में मज्झिमा शाखा प्रश्नवाहन कुल के आचार्य प्रियग्रन्थ सूरि पधारे । तब से प्रश्नवाहनकुल के गच्छ का नाम हर्षपुरीय पड़ा और राजा कर्णदेव के समय में हर्षपुरीय गच्छ का नाम मलधार गच्छ पड़ा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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