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प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन
नगरों का उतना विस्तृत वर्णन नहीं हुआ है जितना अणहिल्लपत्तन के आस-पास के शत्रुञ्जय, स्तम्भतीर्थ, सोमनाथ, भृगुकच्छ, धवलक्क, श्रीमाल, आबू, जावालिपुर, उज्जयिनी आदि का। प्रबन्धकोश के बाह्य साक्ष्य भी इस मान्यता की पुष्टि करते हैं। विभिन्न प्रतियों के प्राप्ति-स्थान के आधार पर राजशेखर का जन्म-स्थान अणहिल्लपत्तन प्रतीत होता है क्योंकि वहाँ से प्रबन्धकोश की अधिकांश प्रतियाँ प्राप्त हुई हैं, जबकि दिल्ली से एक भी नहीं। इन तथ्यों से यह प्रतीत होता है कि दिल्ली के राजनीतिक महत्व और उससे राजशेखर के सम्बन्ध के होते हुए भी राजशेखर का अणहिल्लपत्तन से विशेष सम्बन्ध था। यह सम्बन्ध केवल जैन धर्म के कारण नहीं था, कदाचित् हेमचन्द्र का इससे व्यक्तिगत लगाव था। यह सम्भावना समुचित प्रतीत होती है कि राजशेखर के जन्म और उसके प्रारम्भिक वर्षों से यह नगर सम्बन्धित था।
राजशेखर का जन्म तेरहवीं शताब्दी के अन्तिम दशक में हुआ था। इस सम्बन्ध में निश्चयात्मक रूप से कुछ सटीक कहना कठिन है। जन्म-काल के निर्धारण के लिए उसकी ग्रंथ-रचना-तिथि १३४८४९ ई० को आधार मानकर अनुमान लगाया गया है कि उसका जन्म तेरहवीं शताब्दी के अन्तिम दशक में हुआ होगा क्योंकि उन दिनों बहुधा पचास-साठ वर्ष की परिपक्व आयु में ग्रंथ-रचना करने की परम्परा थी। परन्तु दुर्भाग्य से न तो राजशेखर के माता-पिता के ही विषय में ज्ञात है और न उसके बाल्यकाल के बारे में। प्रबन्धकोशकी ग्रन्थकार-प्रशस्ति से इतना अवश्य विदित होता है कि राजशेखर प्रश्नवाहनकुल की कोटिकगण की मध्यम शाखा का था। प्रबन्धकोश के आन्तरिक साक्ष्यों से सिद्ध होता है कि श्वेताम्बर जैन-धर्म का उपासक होते हुए भी उसमें धर्म-सहिष्णुता की पर्याप्त मात्रा थी और राजशेखर हर्षपुरीय गच्छ का था जिसे मलधार गच्छ भी कहते हैं ।
१. दे. जिनविजय, प्रको, प्रास्ताविक वक्तव्य, पृ. ५-७ । २. प्रको, पृ. १३१; जैपइ, पृ० २२,५४, २११.२१३, ५६८, ६१६-६१९। ३. दे० प्रको, पृ० १३१ तथा जैपइ, पृ० १९५, ३४३, ३७७, ४८१, ५१९,
५४२, ५६८, ६१७-६१९ । हर्षपुर नगर चित्तौड़ के राजा अल्लट राज की
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