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________________ अध्याय-२ प्रबन्धकार की जीवनी व कृतित्व जैन-धर्म की व्यावहारिक उन्नति आचार्यो-सूरियों पर निर्भर है तथा सैद्धान्तिक उन्नति ग्रन्थकारों-इतिवृत्तकारों पर। संयोग से राजशेखरसूरि दोनों ही प्रकार की उन्नति करने वाले सूरि और इतिहासकार दोनों ही थे। वे अपने युग की आकांक्षाओं को शब्द दे सके, युग को बता सके कि उनकी आकांक्षाएँ क्या हैं और उनकी क्रियान्विति भी कर सके। अतः प्रस्तुत अध्याय इतिहास-दर्शन के इस सूत्र पर आधारित है कि इतिहास का अध्ययन करने से पहले इतिहासकार का अध्ययन करना चाहिये । परन्तु दुर्भाग्य से इतिहासकार राजशेखर की जीवनी के सम्बन्ध में आज तक बहुत कम लिखा हुआ प्राप्त होता है। चूंकि कुछ जीवनियों का इतिहास को गम्भीर योगदान होता है और ग्रन्थकार की जीवनी का ज्ञान उसकी कृतियों को समझने में सहायक सिद्ध होता है, इसलिये प्रबन्धकोशकार राजशेखर की जीवनी व कृतित्व पर प्रकाश डालने का यहाँ पर सर्वप्रथम प्रयास किया गया है। प्रबन्धकार की जीवनी व कृतित्व की जानकारी के साधन उसके ग्रन्थ तथा ग्रन्थ-प्रशस्ति हैं। राजशेखर का जन्म स्थान अणहिल्लपुर था। यह प्रबन्धकोश के आन्तरिक व बाह्य साक्ष्यों के आधार पर निर्धारित किया गया है। चंकि किसी भी स्रोत में राजशेखर के जन्मस्थान का नामोल्लेख नहीं हुआ है इसलिये प्राप्त तथ्यों के आधार पर विविध सम्भावनाओं का विवेचन करके केवल अनुमान किया जा सकता है। यद्यपि ग्रन्थकार-प्रशस्ति के अनुसार राजशेखर ने प्रबन्धकोश की पूर्णाहुति दिल्ली में की, तथापि आन्तरिक साक्ष्यों से यह भासित होता है कि उसका जन्म-स्थान गुजरात में सम्भवतः अणहिल्लपुर था, न कि दिल्ली। प्रबन्धकोश में अणहिल्लपत्तन का बारह से अधिक स्थानों पर उल्लेख हुआ है; जबकि दिल्ली का केवल चार स्थानों पर। इसके अलावा प्रबन्धकोश में दिल्ली के आस-पास के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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