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________________ १०] प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन प्राप्त इतिवृत्त हैं जो बखर कहलाते हैं।" मराठी बखर भी जैन - प्रबन्धों की तरह छोटे-छोटे अध्यायों में लिखे जाते थे । कुछ बखुरों में समसामयिक और प्राथमिक इतिहास-लेखन हैं परन्तु अधिकांश गौण इतिहास-लेखन का प्रतिनिधित्व करते हैं । जैन- प्रबन्धों की तुलना में मराठी बखर कालक्रम तथा ऐतिहासिक झलकियों में निर्बल अवश्य हैं परन्तु वे न तो पूर्वाग्रह में फँसते हैं और न न्याय को दिशाहीन करते हैं । ग्राण्ट डफ चिटणीसकृत बखर की प्रशंसा भी करता है कि इसमें मौलिक कागजातों या मूल प्रतियों से संकलन किया गया है जो उन पूर्वजों से सम्बन्धित है जो रायगढ़, जिञ्जी और सतारा के राजदरबारों के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे । मराठीबखर इन दृष्टियों से प्रबन्धों से मेल खाते हैं। हो सकता है कि गुजरात, मालवा, राजस्थान के इतिहास लेखन की इस विधा का प्रभाव महाराष्ट्र में पड़ा हो । अन्त में, जैन-चरित और जैन- प्रबन्ध में अन्तर स्पष्ट करने की एक महत्वपूर्ण समस्या शेष रह जाती है । जैनों में चरित रचने की परम्परा अति प्राचीन और लोकप्रिय रही है । ऐतिहासिक विषयों की क्षणभंगुरता के कारण उनमें ऐतिहासिक तत्व गौण होते गए और काव्य-तत्व को प्रधानता मिलती गई । जैन - चरित प्राय: पौराणिक, रोमांसिक या अर्द्ध ऐतिहासिक शैली में मिलते हैं, जैसे – पउमचरिउ, रिट्टणेमिचरिउ, त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित, कुमारपालचरित चन्द्रप्रभचरित करकण्डुचरिउ, जसहर १. दे० रालिंसन, एच० जी० : सोर्स बुक ऑफ मराठा हिस्टरी, ग्रन्थ १; बम्बई, १९२९, अ: मुख, पृ० पाँचवाँ पाण्डे, गोविन्दचन्द्र ( सम्पा० ) इतिहास : स्वरूप एवं सिद्धान्त, जयपुर, १९७३, पृ० ९५; वार्डर, ए० के० : ऐन इण्ट्रोडक्शन टू इण्डियन हिस्टोरियोग्रैफी, बम्बई १९७२, अध्याय २६ वाँ | , Jain Education International , २. रालिसन, पूर्व निर्दिष्ट, पृ० ४३ । बखर भी पौराणिक इतिहास-लेखन की परम्परा का निर्वाह करते हैं । तिथि विहीनता, घटनाक्रम में भ्रम, अतिमानवीय उपकथाओं के समावेश आदि के दोष इनमें भी पाये जाते For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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