________________
प्रस्तावना
है। वास्तविक जीवन पर आधारित रोचक इतिवृत्त इनका प्रमुख वर्ण्यविषय है। इनमें कल्पनाप्रधान कथाओं का सृजन और अतिमानवीय शक्तियों का वर्णन बहुत कम किया गया है।
अधिकांश जैन-प्रबन्ध राजकीय आश्रय के अभाव में लिखे गये। कालक्रमीय आधार पर जैन-प्रबन्धों को प्रारम्भिक व परवर्ती वर्गों में विभाजित किया जा सकता है। जो जैन-प्रबन्ध शुरू के सौ वर्षों तक लिखे गये उन्हें प्रथम वर्ग में रखा गया है और बाद वालों को द्वितीय वर्ग में। वास्तव में, प्रारम्भिक जैन-प्रबन्ध तेरहवीं शताब्दी के मध्य से लेकर चौदहवीं शताब्दी के मध्य तक लगभग ११५ वर्षों में रचे गये है। ये सामान्य, परस्पर सम्बन्धित और अत्यधिक ऐतिहासिक महत्व के हैं जबकि परवर्ती जैन-प्रबन्ध विशिष्ट और व्यक्ति विशेष का नामाभिधान ग्रहण करने वाले हैं। ये परस्पर असम्बन्धित और अपेक्षाकृत कम ऐतिहासिक महत्व के हैं।
प्रश्न उठता है कि जैन-प्रबन्ध क्या साहित्य के कथा-वर्ग में आते है या जीवनी अथवा उपन्यास की श्रेणी में ?
जैन-प्रबन्ध साहित्य के अन्य रूपों की अपेक्षा जीवनी के ही कुछ समीप आते हैं। कुछ जैन-प्रबन्धों में महापुरुषों की जीवनियाँ भी लिपिबद्ध हैं, परन्तु कभी-कभी प्रबन्धकारों ने अपने चरित्रों के अवगुणों तक का उल्लेख किया है। इस प्रकार ये जीवनियों से भी भिन्न हैं। प्रबन्धकार आवश्यक बातों का चयन करता था और आवश्यक पक्षों का ही निरूपण करता था। अतः जैन-प्रबन्ध केवल जीवनियाँ ही नहीं अपितु घटनाओं का, राज्य की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक व धार्मिक अवस्थाओं का ही अधिकतर वर्णन है। जैन-प्रबन्ध उपन्यासों या लघ उपन्यासों से भी भिन्न है क्योंकि प्रवन्धकार को स्वेच्छया या आवश्यकतानुसार किसी नायक की रचना करने का अधिकार नहीं है। उसे घटना या वार्तालाप को गढ़ने अथबा किसी तथ्य को छोड़ देने की भी स्वतन्त्रता नहीं है।
जैन-प्रबन्धों की भाँति परवर्ती काल के महाराष्ट्र में मराठी बखर ( इतिवृत्त ) लिखे गये थे। महाराष्ट्र का परवर्ती इतिहास-लेखन मराठी भाषा में है जिनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण और विपुल संख्या में
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org