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________________ प्रस्तावना ।५ दिया जो इतिहास का साधन बना। उसने न केवल प्रबन्ध की परिभाषा दी अपितु इतिहास को साहित्य के घेरे से बाहर निकाला। इतिहास जो अब तक केवल युद्धों और राजसभाओं की घटनाओं तक सीमित था उसे राजशेखर ने जनसामान्य के धरातल पर लाकर खड़ा कर दिया। ऐतिहासिक विकासक्रम में राजशेखर का यह महत्वपूर्ण योगदान है । अब जैन-प्रबन्ध इतिहास की एक मानक परम्परा के रूप में स्वीकार किये जाने लगे। राजशेखर के प्रबन्धों में कल्पना-तत्व गौण हो गये हैं और इसका स्वरूप इतिहास की विद्या के रूप में विकसित हो गया, क्योंकि राजशेखर ने अपने ग्रन्थ में उन्हीं प्रबन्धों का संग्रह किया है जिन्हें उसने अपने आचार्यों से श्रुत-परम्परा में प्राप्त किये थे। उपर्युक्त विकासक्रम में जैन इतिहास की कुछ ही विधाएँ दीख पड़ती हैं। परन्तु लौकिक जैन साधनों में पट्टावलियाँ, गुर्वावलियाँ, राजावलियाँ, थेरावलियाँ, ख्यात, प्रशस्तियाँ, विज्ञप्तिपत्र, चरित, प्रबन्ध आदि जैन इतिहास की अन्य विधाएँ हैं जिन्हें जैन लोगों ने प्राचीन काल से लिखना शुरू किया था। प्रबन्धों को छोड़कर इनको अर्द्ध ऐतिहासिक मानना चाहिए, क्योंकि राजाओं, जैन आचार्यों एवं साधारणजनों से सम्बन्धित घटनाओं के वर्णन के साथ-साथ ये तथ्य और गल्प को मिश्रित कर देती हैं। जैन चरितों में तीर्थङ्करों, चक्रवतियों तथा पूर्व काल के ऋषियों की पौराणिक जीवनियाँ हैं । भवदेवसूरि विरचित पार्श्वनाथचरित, हेमचन्द्र का 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित' इसके उदाहरण हैं। ये जैनचरित भी उसी तरह अर्द्ध-ऐतिहासिक हैं, क्योंकि इनमें भी तथ्य एवं गल्प युगनद्ध हैं। अतः इन विधाओं में केवल जैन-प्रबन्ध ही एक स्वतन्त्र शास्त्र की भाँति जैन-इतिहास को एक पृथक् और स्वतन्त्र अस्तित्व प्रदान करता है। जैन इतिहास की इस शाखा की ओर हम ऐतिहासिक विस्तार के लिए उन्मुख होते हैं। इन प्रबन्धों की रचना बाद में हुई पर ये देश १. राजशेखर ने 'प्रबन्ध' शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग ग्रन्थारम्भ में किया है तत्पश्चात् बप्पभट्टिसूरिप्रबन्ध (प्रको, पृ० ३७), हर्षकविप्रबन्ध (वही, पृ० ५५ ), विक्रमादित्य प्रबन्ध ( वही, पृ० ८३ ) तथा वस्तुपाल प्रबन्ध ( वही, पृ० ११७ ) में किया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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