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प्रस्तावना
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किंवदन्ति को इतिहास नहीं अपितु इतिहास का स्रोत माना जाना चाहिए। इसी प्रकार प्रहेलिका ( पहेली ) किसी गूढ़ प्रश्न के ऐतिहासिक उत्तर से सम्बन्धित की जा सकती है, परन्तु उसे इतिहास स्वीकार करना उचित नहीं है। अतः हेमचन्द्र के अनुसार पुरावृत्त को इतिहास मानना उचित होगा। ध्यान देने योग्य बात यह है कि हेमचन्द्र ने इतिह और ऐतिह्य में अन्तर स्थापित किया है। इतिह का अर्थ 'सम्प्रदाय' है जबकि प्राचीन बात का नाम ऐतिह्य है। इससे प्रतीत होता है कि हेमचन्द्र इतिहास के प्रति जागरुक था।
मध्ययुग में और आगे बढ़ने पर जैन इतिहास-लेखन के प्रमाण बहियों के रूप में मिलते हैं। वहिका बही है जिसमें राजा के कार्यों का संकलन किया जाता था। इस प्रकार के उदाहरण मेरुतुङ्गकृत प्रबन्धचिन्तामणि के विक्रमार्क राजा प्रबन्ध और भोजप्रबन्ध से प्राप्त होते हैं। विक्रमार्क राजा प्रबन्ध में लिखा है कि कोषाध्यक्ष धर्मवहिका में राजा द्वारा दिये गए सुवर्ण का वृत्तान्त लिखा करते थे। इसमें आगे वर्णन आता है कि एक बार राजा भोज अपने धर्म व दान की बारम्बार प्रशंसा कर रहे थे तब उनके वृद्ध मन्त्री ने उनके अहङ्कार को कम करने और उन्हें सत्पथ पर लाने के लिए विक्रमादित्य की धर्मवहिका उनके हाथ में रख दी। विक्रमादित्य की दानशीलता का उसमें वर्णन देखकर भोज में विनम्रता उत्पन्न हुई और उन्होंने उस धर्मवहिका की पूजा करने के पश्चात् उसे यथास्थान रखवा दिया। अतः अनुमान किया जा सकता है कि राज्य-अभिलेखागार में इस प्रकार की वहिकाएँ सुरक्षित रखी जाती थीं। प्रबन्धकोश में स्पष्ट लिखा है कि आभड़ श्रेष्ठी के पास तीन प्रकार की वहिकाएँ थी
(१) रोकड़ बही १. "यद्धर्मवहिकायां श्लोकबन्धेन मया सुवर्णदानं निहितम् ।" प्रचि, १०७। "तन्मन्त्री धर्मवहिकायां श्लोकबद्धं लिलेख ।"
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वही, पृ० २६, पंक्ति ११-१२ । "तद्धर्मवहिकानियुक्तो नियोग्येवं काव्यमलिखत् ।" पंक्ति २१ । २. "तदौदार्यविनिजितगर्वसर्वस्वस्तां वहिकामर्चयित्वा यथास्थानं प्रस्थापयत्।"
वही, पृ० २७।
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