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प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन
प्रामाणिक एवं यथार्थ चित्रण है ।"" उन्होंने इतिहास का अर्थ 'इति इह आसीत् ' ( ऐसा यहाँ घटित हुआ ) से लगाया है। जिनसेन ने आगे स्पष्ट किया है कि चूँकि यह प्राचीन घटनाओं का वर्णन करताहै, इसलिए इतिवृत्त है; यह प्रमाणों पर आधारित है, अतः आम्नाय है; यह ऋषियों द्वारा रचित है, अतएव आर्ष है; इसमें उपदेश भरे पड़े हैं, इसलिए सूक्त है; इसमें धार्मिक व नैतिक सिद्धान्त निहित हैं, अतः धर्मशास्त्र है । जिनसेन की इतिहास अवधारणा की यह व्यापकता ब्राह्मण- परम्परा की उस व्याख्या से तुलनीय है जिसमें इतिहास को धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष के उपदेश व इतिवृत्त कथा से युक्त कहा गया है ।
इस प्रकार कौटिल्य की तरह जिनसेन की इतिहास सम्बन्धी विचारधारा अत्यन्त व्यापक और आधुनिक प्रतीत होती है । इतिहास के लिए 'धर्मशास्त्र' शब्द प्रयुक्त कर इन विद्वानों ने ऐतिहासिक विचारधारा में भौतिकवादी तत्वों के साथ-साथ सांस्कृतिक तत्वों का भी समावेश कर दिया है ।
जिनसेन के पश्चात् हेमचन्द्र ने जैनों की ऐतिहासिक परम्पराओं के विकास में अधिक योगदान किया। हेमचन्द्र ने अभिधानचिन्तामणि' में पुरावृत्त, प्रवह्निका या प्रहेलिका, जनश्रुति या किंवदन्ति वार्ता - ऐतिह्य एवं पुरातनी को 'इतिहास' का पर्याय बताया है | पुरावृत्त नासिकेतोपाख्यान, महाभारत आदि हो सकते हैं । जनश्रुति एवं
१. इतिहास इतीष्टं तद् इतिहासीदिति श्रुतेः । इतिवृत्तमर्थं तिह्यमाम्नायञ्चामनान्ते तत ॥ ऋषिप्रणीतमार्षस्यात् सूक्तं सूनृतशासनात् । धर्मानुशासनाच्चेदं धर्मशास्त्रमिति स्मृतम् ॥
आदिपुराण प्रथम, पृ० २४-२५ । दे० झा, सिद्धनाथ : आदिपुराण का सांस्कृतिक अध्ययन, बी० एच० यू० अप्रकाशित पी-एच० डी० शोधप्रबन्ध, १९६५; जैनसो, पृ० १, जैसाबृइति, पृ० ५५ ।
२. इतिहास : पुरावृत्तं प्रवह्निका प्रहेलिका । जनश्रुतिः किंवदन्ती वार्तेति पुरातनी ॥
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अभिचि, काण्ड २, श्लोक १७३, पृ०७२-७३ ॥
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