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अध्याय - १
प्रस्तावना
प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन जैन इतिहास के विकासक्रम की एक कड़ी है । 'इतिहास' शब्द अथर्ववेद में पाया जाता है और महाभारत में पञ्चम वेद स्वीकार किया गया है ।" ब्राह्मण व बौद्ध परम्परा में इतिहास की अवधारणा पुराण, हर्षचरित, बुद्धचरित, aria और महावंस से प्रमाणित है । भारतीय साहित्य में इतिहास को इतिवृत्त, आख्यायिका, पुराण आदि शब्दों से व्यक्त किया जाता रहा है। पौराणिक साहित्य में सूत - मागध इस परम्परा के संरक्षक कहे गए हैं । प्रारम्भिक जैन आगम साहित्य में ऐसी सूत - मागध परम्परा का संकेत नहीं मिलता है किन्तु इसका यह तात्पर्य नहीं है कि जैन आगम - साहित्य में इतिहास की अवधारणा थी ही नहीं । जैन आगम - साहित्य में नेमि, पार्श्व, महावीर जैसे तीर्थङ्करों के जीवन-वृत्त के साथ ही श्रेणिक, कुणिक, कुणाल एवं सम्प्रति जैसे राजाओं की परम्परा भी सुरक्षित है ।
जैनों ने ब्राह्मण पुराण- परम्परा के प्रारूप पर जैन पुराणों की रचना की । जिनसेन ( ८३७ ई० ) ने आदिपुराण में इतिहास की व्यापक परिभाषा प्रस्तुत की है। " इतिहास भूतकालीन घटनाओं का
१. अथर्ववेद, ११/१० / ७ में इसे 'प्राचीन कथा' के अर्थ में प्रयुक्त किया गया है । पूर्वकल्प व विद्या के अर्थ में भी इसका प्रयोग हुआ है । महाभारत, १२/२१७ में युधिष्ठिर के प्रश्न के उत्तर में भीष्म पुरातन इतिहास का प्रयोग करते हैं । ब्लूमफील्ड और विण्टरनित्ज प्रभृति पाश्चात्य विद्वान् यह स्वीकार करते हैं कि पञ्चमवेद के रूप में इतिहास पुराण का प्रयोग हुआ है । दे० पाण्डेय, रा० सु० : महाकाव्यों और पुराणों में सांख्य दर्शन, दिल्ली, १९७२, पृ० १३८ ।
२. दे० पाठक, वी० एस० : एंशिएण्ट हिस्टोरियन्स ऑफ इण्डिया, बम्बई,
१९६६, प्रस्ता० पृ० दसवीं ।
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