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________________ २०२। प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन गया है कि किस तरह उसके पूर्वज विभिन्न राजदरबारों में विशिष्ट पदों पर थे। मण्डन के पश्चात् भी उसके वंशधर मालवा शासकों के कुशल सहायक एवं पदाधिकारी बने रहे। (ग) सुमतिसम्भवकाव्य इसमें तपागच्छीय विद्वान् कवि सुमतिसाधु का जीवनचरित निबद्ध करने का उपक्रम किया गया है। इससे कहीं अधिक उपयोगी सामग्री माण्डवगढ़ के धनाढ्य व्यापारी संधपति जावड़ की सामाजिक प्रतिष्ठा और धर्मनिष्ठा के विषय में मिलती है। यह सर्वविजयगणि द्वारा रचित है। इसका रचनाकाल १४९०-९४ ई० के बीच है। (घ) जावडचरित्र और जापडप्रबन्ध जावड़ ( १६वीं शताब्दी के मध्य ) मालवा के माण्डवगढ़ का धनाढ्य व्यापारी था और साथ में मालवा के तत्कालीन सुल्तान गयासुद्दीन खल्जी ( १४८३-१५०१ ई० ) का राज्याधिकारी भी था। जावड़ का चरित्र उक्त (ग ) में विस्तार से मिलता है। सम्भवतः ये दोनों काव्य भी उस समय अर्थात् १४९०-९४ ई० के बीच रचे गये हों। () राजशेखरसूरि का प्रबन्धकोश __ इसकी ग्रन्थकार-प्रशस्ति से तुगलककालीन साहित्यिक व धार्मिक क्रिया-कलापों पर थोड़ा प्रकाश पड़ता है। १. यतीन्द्रसूरि अभिनन्दन ग्रन्थ में प्रकाशित दौलत सिंह लोढ़ा का लेख : मन्त्री मण्डल और उसका गौरवशाली वंश । २. जिरको, पृ० ४४६ । ३. वही, पृ० १३४। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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