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परिशिष्ट
[ २०१ गुजरात के अन्तिम महाजन समरसिंह ( समराशाह ) के परिवार का तथा उसके धार्मिक कार्यों का अच्छा वर्णन किया गया है । .
तुगलक वंश के सुल्तानों और उनके प्रान्तीय शासकों की महत्वपूर्ण सूचनाएँ दी गई हैं जो तत्कालीन भारत के धार्मिक इतिहास के निर्माण में सहायक सिद्ध हुई हैं। समराशाह तीन भाई थे। बड़ा सहजपाल देवगिरि ( दौलताबाद ) में बस गया था। मझला साहण खम्भात में बसकर अपने पूर्वजों की कीर्ति फैला रहा था और समराशाह पाटन में रहकर प्रभावशाली बना था। तत्कालीन दिल्ली का सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक उस पर बड़ा स्नेह करता था और उसने उसे तैलंगाने का सूबेदार बनाया था। गयासुद्दीन का उत्तराधिकारी मुहम्मद तुगलक भी उसे भाई जैसा मानता था और अपने समय में भी उसने उसे उक्त पद पर रहने दिया। उसने अपने प्रभाव से पाण्डु देश के स्वामी वीरवल्ल को सुल्तान के चंगुल से छुड़ाया और मुसलमानों के अत्याचार से अनेक हिन्दुओं की रक्षा की। उसने उन मुसलमान शासकों के काल में जैन धर्म-प्रभावना के अनेक कार्य किये। (ख) जिनप्रभसूरिकृत : विविधतीर्थकल्प ___ इससे भी तुगलक वंश के राज्यकाल में जैनधर्म की स्थिति की अनेक सूचनाएँ मिलती हैं। इन शासकों के राज्यकाल में जैनों को अच्छा प्रश्रय मिलता रहा है। माण्डवगढ़ में अनेक धनाढ्य और प्रभावक जैन व्यापारी थे। उनमें से कुछ को समय-समय पर राजमन्त्री या प्रधानमन्त्री व अन्य अनेक विशिष्ट पदों को सँभालने का अवसर मिला था। माण्डवगढ़ के सुल्तान होशंगसाह गोरी ( १४०५-३२ ई० ) का महाप्रधान मण्डल नामक जैन था जो बड़ा शासन कुशल और महान् साहित्यकार था। उसके द्वारा रचे ग्रन्थों की प्रशस्तियों में बतलाया १. देसाई, मो० द० : जैन साहित्यनो संक्षिप्त इति०, पृ० ४२४-४२७; शेठ,
चि० भा० : जैनिज्म इन गुजरात, पृ० १७१-१८० में समरसिंह का
चरित्र सविस्तर दिया गया है । २. दे० जैन, ज्योति प्रसाद : भारतीय इतिहास : एक दृष्टि, पृ० ४११
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