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________________ २०० प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन १० ११ १३ १४ - क्र० सं० यावनी भाषा के शब्द प्रको, पृष्ठ वितीक, पृष्ठ महम्मद सुरत्राण ( सुल्तान ) १३३ मुद्गल (मंगोल अर्थात् मुसलमान) १०९ मोजदीन सुरत्राण ( सुल्तान ) ११७, ११८, ११९ वगुलीसाह सुरत्राण ( सुल्तान ) १३३ वेगवरिस १३३ सदीक ( नौवित्तक ) १०८, १०९ समसदीन तुरुष्क ( सुरत्राण ) (तुर्क सुल्तान ) १३३, १३४ ६५ सहावदीन सुरत्राण ( सुल्तान ) ११७, १३३ ४५, १०६ हजयात्रा ११९ १५ हेजिवदीन १३३ उपर्युक्त तालिका में प्रबन्धकोश के पृष्ठों की संख्या देखने से यह विदित होता है कि इसमें यावनी भाषा के शब्दों के प्रयोग ग्रन्थ के उत्तरार्द्ध में किये गये हैं। (५) तुगलक वंश के इतिहास के जैन साधन तुगलक वंश के इतिहास के पुननिर्माण के लिए कतिपय जैन-स्रोत महत्वपूर्ण हैं । गयासुद्दीन तुगलक ( १३२१-२५ ई.), मुहम्मद बिन तुगलक ( १३२५-५१ ई०) तथा फीरोजशाह तुगलक ( १३५१-८८ ई.) के राज्य और प्रान्तीय शासकों के राज्यों में जैनधर्म, जैनाचार्यों के क्रिया-कलाप, जैन साहित्य, मन्दिर, तीर्थ आदि की स्थिति पर कई ग्रन्थ प्रकाश डालते हैं। (क ) शत्रुञ्जयतीर्थोद्वार प्रबन्ध ( अपरनाम नाभि नन्दनोद्धार प्रबन्ध ) 'इसमें गुजरात के पाटनगर के प्रसिद्ध जौहरी और प्राचीन स्वतन्त्र १. इसकी रचना उपकेशगच्छीय सिद्धसूरि के पट्टधर शिष्य कक्कसूरि ने १३३५ ई० में की थी। इसी के लगभग समरसिंह का स्वर्गवास हुआ था। २. जिरको, पृ० २१०, पृ० ३७२, हेमचन्द्र ग्रन्थमाला द्वारा प्रकाशित । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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