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________________ परिशिष्ट । १९९ - स्थान पृष्ठ वामनस्थली ६२, १०३, १०४ वायट ( महास्थान ) नगर ७, ८, ६१ विमलगिरि (पर्वत) ४२, ४९, १२८ शत्रुञ्जय ( गिरि, तीर्थ) १२, १४ आदि (वीस बार ) शाकम्भरी ५०, ५१, ५२ श्रीमालपुर २५, २६, ४८ सपादलक्ष ५१, ५२, १३१ सुराष्ट्र (देश) २२, ४२, ४७, ८४, १०१, १०३ स्तम्भ ( तीर्थ, पूर) ४२, १०३ आदि ( ग्यारह बार ) (४) प्रबन्धकोशान्तर्गत प्रयुक्त यावनी भाषा के शब्द प्रबन्धकोश में मुसलमानों के लिए 'म्लेच्छ', 'मुद्गल', 'यवन' तथा 'तुरुष्क' और सुल्तान के लिथे 'सुरत्राण' संस्कृत शब्द प्रयुक्त किये गये हैं। परन्तु जैन-प्रबन्धों में यावनी भाषा के शब्दों के भी यत्र-तत्र प्रयोग किये गये हैं। विविधतीर्थकल्प की तुलना में प्रबन्धकोश में ऐसे शब्दों की रचना मुस्लिम-बहुल प्रदेश की राजधानी में हुई थी। प्रबन्धकोश, 'साहित्य समाज का दर्पण है', इस सूत्र को सार्थक सिद्ध करता है । इस सम्बन्ध में निम्नलिख तालिका द्रष्टव्य हैक्र० सं० यावनी भाषा के शब्द प्रको, पृष्ठ वितीक, पृष्ठ - - तोबा ११८ ११७ निसरदीन सुरत्राण ( सुल्तान ) १३३ बीबी (प्रेमकमला या हरा) मसीति ( मस्जिद ) ११९ महम्मद साहि ( शाह) १३१ ४६, ९५ दे० प्रको, पृ० २३, ५८ आदि; १०९, ११७, १३३, १३४ । 'सुरत्राण' शब्द के स्वतन्त्र उल्लेख के लिये दे. वही, पृ० ५७-५८, पृ० १३३ तथा वितीक, पृ० ४६, पृ० ९६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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