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________________ अध्याय ९ उपसंहार प्रबन्धकोश के ऐतिहासिक विवेचन से यह सिद्ध होता है कि यह ग्रन्थ जैन इतिहास के विकासक्रम की एक महत्वपूर्ण कड़ी है । जब से राजशेखर ने उत्तर भारत में स्थापित ऐतिहासिक परम्परा को आगे बढ़ाया, जैन-प्रबन्ध इतिहास की एक मानक-परम्परा के रूप में स्वीकार किये जाने लगे। फलतः इतिहासलेखन की इस विधा का प्रभाव मराठी बखर पर पड़ा। राजशेखरसूरि प्रभावक आचार्य और इतिहासकार दोनों थे। व्यापक अध्ययन और परिभ्रमण की उनके प्रबन्धकोश पर अमिट छाप पड़ी। सूरि-पद प्राप्त कर लेने तथा तुगलक दरबार में प्रतिष्ठा अजित कर लेने से राजशेखर की प्रस्थिति में वृद्धि हुई। ऐसी प्रस्थिति में उन्होंने जो भूमिका अदा की वह जैन इतिहास में सदा स्मरणीय रहेगी। लेकिन प्रबन्धकोश ने राजवंशीय इतिहास की भाँति भारत के केवल कुछ ही राज्यों का विवरण प्रदान किया है। इस दृष्टि से राजशेखर द्वारा प्रदत्त इतिहास कभी भी समूचे भारतवर्ष का इतिहास नहीं कहा जा सकता है। ___ कहीं-कहीं प्रबन्धकोश का उद्देश्य उपदेशात्मक भी हो गया है जो इसका दोष है । इतिहास का स्वरूप उपदेशात्मक नहीं होना चाहिये । श्रीदेवी द्वारा मृत शूद्रक का अमृत से अभिसिक्त हो पुनः जीवित हो जाना, सिंहासन की चारों काष्ठ-पूतलियों का हँसना, पूनर्जन्म तथा बेतालिक कथा आदि अतिमानवीय, दैवी, तिलस्मी जान पड़ते हैं। फिर भी कल्हण ने तो कश्मीर में और मेरुतुङ्ग ने गुजरात में इतिहास रचा था किन्तु राजशेखर ने जैन होते हुए भी मुसलमानों के हृदप्रदेश दिल्ली में प्रबन्धकोश का जो साहसपूर्वक प्रणयन किया वह कम स्तुत्य नहीं है। ___ न तो वह राजकीय आश्रय का मुखापेक्षी था और न वह स्वयं घटनाओं के बीच में आता था। वह अपने स्रोतों के प्रति इतना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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