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________________ तुलनात्मक अध्ययन [ १८९ - राजशेखर ने इतिहास की एक विधा जैन-प्रबन्ध की परिभाषा अवश्य दी, किन्तु इब्न खल्दून ने सर्वप्रथम इतिहास की एक समाजशास्त्रीय परिभाषा दी -- “इतिहास मानव-समाज, विश्व-संस्कृति, सामाजिक परिवर्तनों, क्रान्ति और विद्रोह के परिणामस्वरूप राष्ट्रों के उत्थान और पतन का वृत्तान्त है।" राजशेखर ने समाज में वर्गसंघर्षों की अनुभूति अवश्य की थी। उसने वर्ग-संघर्ष के केवल धार्मिक और कुछ सीमा तक आर्थिक आधारों का उल्लेख किया था। परन्तु इब्न खल्दून के अनुसार समाज के अन्दर विकास, परिवर्तन और गति होती है। समाज का स्वरूप 'असबिया' ( सामूहिकता ) से बनता है। 'असबिया रक्त सम्बन्ध, सामूहिक भावना, पारस्परिक निकटता और आदान-प्रदान से उत्पन्न होती है। जब 'असविया' की भावना शनैःशनैः क्षीण होती जाती है तब समाज का भी क्षय होता जाता है। राजशेखर ने समूचे ग्रन्थ के केवल चार प्रबन्धों ( हर्षकवि, हरिहरकवि, अमरचन्द्रकवि और मदनकीर्ति ) में मौलिकता प्रदर्शित की है । उसे अनेक प्रबन्धों का ज्ञान था जिनसे उसने सामग्री ग्रहण की। परन्तु इब्न खल्दून में आश्चर्यजनक मौलिकता थी, क्योंकि उसे यूनानी कृतियों का ज्ञान नहीं था। उसने बिखरे हुए राजनीतिक और सामाजिक विचारों को इतिहास में पिरोया जिसे वह अतीत और वर्तमान को जोड़ने की एक जीवन्त शक्ति मानता था। उसका सक्रिय और उद्वेलित जीवन उसे पश्चिम में पेद्रो और पूर्व में तैमूर के सम्पर्क में ले आया। इब्नखल्दन के ग्रन्थों के अध्ययन से प्रबन्धकोश की कमियों का उद्घाटन होता है क्योंकि तुलनात्मक अध्ययन का उद्देश्य ही गुण-दोषों को छानना होता है। इस प्रकार समानविषयक जैनप्रबन्धों, राजतरंगिणी, मध्ययुगीन भारत के मुस्लिम ग्रन्थों, तारीख ए-फीरोजशाही, तत्कालीन यूरोप के क्रॉनिका मेजोरा व 'क्रॉनिक्य' तथा किताब अल-इबर व मुकद्दमा से प्रबन्धकोश की तुलना की गयी। फलतः दो महाद्वीपों के उक्त जैन १. दे० इब्ने खल्दून का 'मुकद्दमा' ( विश्व इतिहास की प्रस्तावना, हि० अनु० ) रिजवी, हिन्दी समिति, लखनऊ, १९६१, पृ० ७१ । २. रोसेन्थल : ए हिस्टरी ऑफ मुस्लिम हिस्टोरियोग्रैफी, १९५२, पृ० १०४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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