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प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन
इतिहास - दर्शन का अभूतपूर्व प्रतिपादन किया। इब्न खल्दून में मानवीय एवं सांस्कृतिक विकास के सिद्धान्तों की पकड़ किसी भी मध्यकालीन ईसाई इतिहासकार से अधिक थी । वाल्तेयर के समय तक ईसाई जगत् का कोई भी इतिहासकार उसकी समता नहीं कर सकता है | उसने 'मुकद्दमे' में ऐसे इतिहासदर्शन का प्रतिपादन किया है जिसकी कल्पना किसी ने किसी भी देश या किसी भी काल में नहीं की है ।
राजशेखर ने इतिहास के लिये सामान्यतया प्रयुक्त होने वाले शब्दों इतिवृत्त, वृत्या, प्रागुक्त वृत्त, प्राचीन वृत्त, सत्यवाता, कीर्तन आदि का व्यवहार किया है । लेकिन इब्नखल्दून इतिहास के लिए सामान्यतया प्रयुक्त शब्द ' तारीख' के स्थान पर अधिक व्यापक शब्द 'इबर' ( विवेक या बोध ) का चयन करता है । वह पहला इतिहासकार है जिसने सार्वभौमिक अर्थात् इस्लामी विश्व के इतिहास का विवरण प्रदान किया है । उसका प्रयोजन एक कदम और आगे बढ़कर इतिहास से सीखना था, कारणों का सम्यक् विश्लेषण कर उनमें निहित रहस्यों को समझाना और उनका 'इबर' (बोध) करना
था ।
राजशेखर ने इतिहास और परम्परा का वर्णन तो किया है किन्तु उन्हें समझाया नहीं है । इब्नखल्दून ने इतिहास और हदीस ( परम्परा ) में अन्तर स्थापित करते हुए कहा है कि हदीस का सम्बन्ध विध्यात्मक आदेशों से है जबकि इतिहास का सम्बन्ध वास्तविक घटनाओं से है । ऐतिहासिक विवरण आदेश नहीं होते, अपितु घटनाओं के सकारात्मक अथवा नकारात्मक वक्तव्य होते हैं जो सत्य या मिथ्या होते हैं । फलतः उसने 'मुकद्दमे' की प्रस्तावना में इतिहासकारों की भूलों के सम्बन्ध में १२ उदाहरण पेश किये हैं ।
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१. हिहिरा, पृ० ९४ व ९६ इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका ग्रन्थ १२, पृ० ३५; पाण्डे, गो० च० ( सम्पा० ) : इतिहास : स्वरूप एवं सिद्धान्त, पृ० १२१-१२३; बुद्धप्रकाश : इतिहास दर्शन, हि समिति, लखनऊ, १९६८, पृ० ४७; विशेष जानकारी के लिये दे० इन्साइक्लोपीडिया ऑफ इस्लाम तथा ह्यूजेस की 'ए डिक्शनरी ऑफ इस्लाम', लन्दन, १९३५ । २. पाण्डे, गो० च० : इतिहास : स्वरूप एवं सिद्धान्त, पृ० १२१-१२२ ।
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