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प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन
यान और निधन की। उसके समय के विद्रोहों की न तिथि है और न सही क्रम । इस क्षेत्र में प्रबन्धकोश तारीख-ए-फीरोजशाही से बीस पड़ता है। __ तारीख-ए-फीरोजशाही कहीं-कहीं क्रमहीन और अव्यवस्थित है । विभिन्न शीर्षकों के अन्तर्गत विषय-वस्तु का विभाजन पैराग्राफों में होते हुए भी ग्रन्थ का अधिक विकास नहीं हो पाया है । दक्षिण का वर्णन करते समय उत्तर-भारत की अवहेलना कर दी गयी है। .
बरनी ने भिन्न-भिन्न सूत्रों से घटनाओं को एकत्र करके जाँचने का प्रयत्न नहीं किया है। उसके विचार से इतिहासकार के लिए पक्का मुसलमान होना पर्याप्त है, उसे किसी प्रमाण की जरूरत नहीं है । बरनी ने इतिहास एकदम नहीं अपितु समय-समय पर लिखा। उसने अपनी 'तारीख' की रचना में समकालीन कृतियों का पूरा-पूरा उपयोग नहीं किया। यदि उसने खुसरो के खजाइन-उल-फुतूह को देखकर अपना प्रारूप संशोधित कर लिया होता तो निश्चित रूप से उसने चित्तौड़, रणथम्भौर, मालवा और दक्कन में अलाउद्दीन के युद्धों की अधिक सूचना दी होती।' अतः इन दोनों ग्रन्थों के तुलनात्मक अध्ययन से प्रबन्धकोश के गुण-दोषों पर प्रकाश पड़ता है । ( ८ ) मध्ययुगीन यूरोप के 'क्रॉनिका मेजोरा' व 'क्रॉनिक्यू'
भारतवर्ष और अरब की तरह मध्यकालीन यूरोप में इतिहासलेखन इतिवृत्त के ही रूप में था। ये अधिकांशतः मठों या गिरजाघरों में लिखे जाते थे; क्योंकि मठों की धनराशि, उनके आवास व प्रसाधन, विद्या के आदर्श सदन के रूप में थे। पूर्वाग्रह व मठ ऐसे मानक और कसौटी बन गये थे जिन पर राजागण और पोप भी कसे जाते थे। इस प्रकार राजमार्गों पर या राजधानियों के समीप स्थित मठ
१. लाल, कि० श० : खल्जी वंश का इतिहास, आगरा, १९६४, प०
३५२ । २. आहि, पृ० ५२-५६; उडवार्ड, ई० एल० : इम्प्रेशंस ऑफ इंग्लिश
लिटरेचर, लन्दन, १९४७, पृ० १५१-१५३; लूकास, एच० एस० : ए शॉर्ट हिस्टरी ऑफ सिविलाइजेशन, द्वितीय सं०, न्यूयार्क १९५३, पृ० ४ व आगे।
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