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तुलनात्मक अध्ययन
[ १७९ है। तारीख-ए-फीरोजशाही की प्रस्तावना अलंकृत भाषा में है किन्तु अन्य अध्यायों में सरल, बोलचाल की फारसी भाषा और हिन्दुस्तानी शब्दों- बदला, भट्टी, चाकर, चराई, चौतरा, चौकी, छप्पर, ढोलक, मण्डी--के प्रयोग कई बार हुए हैं। कहीं-कहीं उसकी भाषा इतनी टूटी-फूटी है कि उसका कुछ अर्थ ही नहीं निकलता।' शैली की दृष्टि से प्रबन्धकोश और तारीख-ए-फीरोजशाही में अन्तर है। प्रबन्धकोश की शैली सरल संस्कृत में स्पष्ट है जबकि 'तारीख' की शैली बहुत अलंकारपूर्ण है।' बरनी कुछ घटनाओं और नीतियों को मध्ययुगीन शैली में वार्तालाप के माध्यम से प्रस्तुत करता है और फिर स्वयं अपने विचारों को दूसरों के मुख द्वारा कहलवाता है। दुर्भाग्य से तारीख-एफीरोजशाही को उसके प्रतिलिपिकारों ने बहुत क्षति पहुँचायी है।
इतिहासशास्त्रीय दृष्टि से तारीख-ए-फीरोजशाही प्रबन्धकोश की अपेक्षा बलवती प्रतीत होती है। बरनी के मतानुसार इतिहास की नींव सत्यता पर आधारित है। "मैंने जो कुछ इस इतिहास में लिखा है, वह सच-सच लिखा है, और उस पर विश्वास किया जा सकता है।" इतिहासकार को अपने वर्णनों में सटीक होना चाहिये तथा अतिशयोक्तियों से बचना चाहिये । असत्य वर्णन के दण्ड स्वरूप परलोक में उसे मुक्ति नहीं मिलती।' बरनी ने अपने युग के इतिहास में अपने उत्थान और पतन को ढूँढ़ा। अपने दुःखान्त जीवन के कारणों को सुल्तानों और मलिकों के व्यवहारों में खोजा । जलालुद्दीन खल्जी का वर्णन करते-करते अपने दुर्भाग्य को कोसने में न चूका। १. लाल, कि० श. : पूर्वनिर्दिष्ट, पृ० ३५३ । २. ईश्वरी प्रसाद, पूर्वनिर्दिष्ट, पृ० ५४० । ३. बरनी : तारीख-ए-फीरोजशाही, पृ. २३ तथा पृ० २३७ । दे० इलियट
और डाउसन, तृतीय, (हि. अनु० ), पृ० ६३ तथा लाल, कि० श० :
पूर्वनिर्दिष्ट, पृ० ३५२ । ४. बरनी, पूर्वनिर्दिष्ट, पृ० १२-१३ तथा पृ० १६ । ५. दे० वही, पृ० २०० तथा हसन, एम० ( सम्पा० ) : हिस्टोरिएन्स
ऑफ मेडिवल इण्डिया, पृ० ४३ में निजामी, के. ए. का लेख जिया. उद्दीन बरनी।
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