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१७८] प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन उसकी आँखों-देखी और व्यक्तिगत जानकारी पर आधारित हैं।' __ तारीख-ए-फीरोजशाही में सुल्तानों, दरबारियों, कवियों, सन्तों, इतिहासकारों आदि की लम्बी सूची प्राप्त होती है। अभियानों, आर्थिक सुधारों, बाजार में प्रचलित कीमतों, राजस्व-नियमों के वृत्तान्त उसे सच्चे अर्थों में इतिहास-ग्रन्थ बनाते हैं। कृति का प्रारम्भ इतिहास-लेखन और ऐतिहासिक अध्ययन के उपयोग की चर्चा से होता है।' शासकों के कर्तव्यों पर विस्तारपूर्वक लिखा गया है। परन्तु प्रबन्धकोश की भाँति 'तारीख' में जनसाधारण और उनके जीवन का वर्णन नहीं हुआ है क्योंकि बरनी की राजनीतिक बुद्धि सल्तनत के इर्द-गिर्द तक ही सीमित थी। प्रबन्धकोश की भाँति तारीख-ए-फीरोजशाही में कारणत्व की विवेचना की गयी है। इसमें उन कारणों की भी आलोचनात्मक व्याख्या की गयी है, जो खल्जी-वंश के पतन के लिये उत्तरदायी थे।
जिस तरह राजशेखर ने जैन-प्रबन्धों को परिभाषित कर इतिहास के प्रति चेतना का परिचय दिया है, उसी तरह जियाउद्दीन भी ऐतिहासिक साहित्य में अपने योगदान के प्रति जागरुक था और निःसंकोच घोषणा करता है कि गत हजार वर्षों से 'तारीख-ए-फीरोजशाही' जैसी पुस्तक नहीं लिखी गई। तारीख-ए-फीरोजशाही के साक्ष्य निजामुद्दीन अहमद, बदायूनी, फरिश्ता, हाजीउद्दबीर के परवर्ती इतिहासग्रन्थों में मिलते हैं। निजामुद्दीन कहीं-कहीं बरनी की नकल ही कर लेता है और कहीं उसके द्वारा छोड़ी गयी गुत्थियाँ सुलझाता है।" ठीक ऐसी ही नियति का सामना प्रबन्धकोश कर चुका था।
जहाँ तक भाषा-शैली का सवाल है, प्रबन्धकोश में सरल संस्कृत, प्राकृत-पद और बोलचाल की यामिनी भाषा के शब्दों का प्रयोग हुआ
१. वही, पृ० १७५; इलियट और डाउसन, पूर्वनिर्दिष्ट, पृ० ९३ । २. बरनी : तारीख-ए-फीरोजशाही, पृ० १०-१२ । ३. वही, पृ० ४१-४४ । ४. वही, पृ० १२२-१२३ । ५. लाल, कि० श० : खल्जी. वंश का इतिहास, आगरा, १९६४, पृ०
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