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प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन
कोई अवधारणा उस समय नहीं थी, तथापि विविध राजवंशीय इतिहास का प्रणयन स्वाभाविक रूप से शुरू हो गया था । अतः प्रबन्धकोश ने इतिहास के क्षेत्र को विस्तृत किया ।
प्रधानतः गद्य में लिखे होने के कारण प्रबन्धकोश में ऐतिहासिक तत्वों का समावेश सरलता से हुआ है और यह ग्रन्थ इतिहास के समीप आ जाता है । इस मान में राजतरंगिणी पीछे रह जाती है । प्रबन्धकोश की राजतरंगिणी पर श्रेष्ठता एक और बिन्दु पर स्थापित होती है कि राजशेखर ने सामान्यजनीन इतिहास-लेखन का श्रीगणेश किया और उसके इतिहास की रचना किसी राजाश्रय में नहीं हुई थी । ( ६ ) मध्ययुगीन भारत के मुस्लिम ग्रन्थ
मध्ययुगीन भारत में साहित्यिक उन्नति के साथ-साथ इतिहासलेखन की महत्वपूर्ण प्रक्रिया चलती रही। प्राचीन यूनानियों और चीनियों की भाँति मुसलमानों को भी अतीत जानने की जिज्ञासा थी । इस देश में मुसलमान फारसी इतिहास-लेखन परम्परा लेकर आये । फलतः भारत में प्रारम्भिक तुर्कों के अधीन इतिहासशास्त्र पनपा अधिकतर तफसीर ( टीकाएँ), अहादीस ( परम्पराएँ), फिक ( न्यायशास्त्र ) अरबी और फारसी में लिखे गये । महमूद गजनी के भवनों एवं उद्यानों को चार सौ कवि अपने काव्यों से गुंजरित करते थे । उसके साथ आने वालों में अबूरीहान मुहम्मद अल्बीरूनी ( ९७३१०४८ ई० ) ने संस्कृत का भी अध्ययन किया और भारत विषयक ज्ञान की गहराई में कोई भी मुसलमान लेखक उसकी बराबरी नहीं कर सकता । मूल और अनुवादों को मिलाकर उसने लगभग २० पुस्तकें लिखी हैं जिनमें 'तहकीक-ए-हिन्द' (१०३० ई० ) सर्वप्रसिद्ध है । मोहम्मद गोरी ने ताजुद्दीन हसन, रुकुनुद्दीन हमजा, शिहाबुद्दीन
१. शर्मा, रजनीकान्त : अल्बीरूनी का भारत ( अनु० ), इलाहाबाद, १९६७, पृ० ३ ।
२. अल्बीरूनी ने पौलिस सिद्धान्त, बृहत्संहिता, लघुजातक का संस्कृत से अनुवाद किया । उसके पुराणों के अध्ययन, पतञ्जलि, सांख्य, गीता के उद्धरण उसके द्वारा भारत की खोज के प्रतीक हैं ।
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