SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 196
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तुलनात्मक अध्ययन [ १७१ दूसरा महत्वपूर्ण अन्तर यह है कि राजतरंगिणी में हम ज्यों-ज्यों पुरातन वृत्तान्तों की ओर पीछे जाते हैं त्यों-त्यों विवरण रूढ़िवादी और पौराणिक होता जाता है किन्तु जैसे-जैसे हम समकालीन वृत्तान्तों की ओर बढ़ते हैं कल्हण का विवरण सच्चे ऐतिहासिक चरित्र का होता जाता है । कल्हण की अपेक्षा राजशेखर में समकालिकता का अभाव है । वस्तुतः समकालिक इतिहास लिखने के सम्बन्ध में राजशेखर अपने को बचाता रहा जबकि कल्हण समकालीन वृत्तों का विश्लेषण करता है | जहाँ तक तिथियों का सवाल है राजतरंगिणी के पूर्ववर्ती भाग का कालक्रम भ्रान्तिमूलक है । अशोक, कनिष्क, तोरमाण, मिहिरकुल, खिंगिल आदि के काल गलत दिये गए हैं। रणादित्य द्वारा तीन सौ वर्षों तक शासन करने का कथन नितान्त अश्रद्धेय है । यह कथन इस बात का परिचायक है कि कल्हण तिथि के उल्लेख के प्रति कितना उदासीन था । कल्हण के आधार पर यदि अशोक मौर्य की तिथि का निर्धारण किया जाय तो उसकी तिथि १२६० ई० पू० होगी । परन्तु राजशेखर देश के साथ-साथ काल के प्रति भी सजग था । उसने कालक्रमानुसार राजाओं की शासनावधियों का उल्लेख किया है । विक्रम और वीर संवत् में कालक्रम प्रदान किये हैं और एक स्थल पर इन दोनों संवत्सरों का तुलनात्मक उल्लेख तक किया है । विक्रम संवत् में संवत्सर, मास, पक्ष, तिथि, वार, नक्षत्र आदि तक का सूक्ष्म उल्लेख किया है । कालक्रमीय पद्धति में वह कल्हण से काफी आगे बढ़ जाता है । कल्हण ने कभी-कभी राजतरंगिणी को मनोरंजन का स्रोत बनाने के लिए विगत घटनाओं की सटीकता को तिलांजलि दे दी है किन्तु राजशेखर ने प्रबन्धकोश को मनोरञ्जक बनाने में किसी सिद्धान्त का त्याग नहीं किया है । कल्हण ने केवल कश्मीर का स्थानीय इतिहास लिखा, किन्तु राजशेखर ने चार-पाँच राज्यों – गुजरात, मालवा, कन्नौज, सपादलक्ष, दिल्ली, बंगाल आदि के बारे में लिखा और अपने इतिहास को अधिक व्यापक बनाया । यद्यपि राष्ट्रीय इतिहास की १. स्टाइन, ए० : कल्हणूस राजतरंगिणी, पृ० ६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy