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________________ १७०1 प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन देता है । दोनों ग्रन्थों में एक सामान्य दोष यह भी पाया जाता है कि उनमें डाकिनी-विद्या, चमत्कार, दैववशात्, भाग्य के खेल, दानवों आदि के भी वर्णन आ गये हैं। एक भारतीय की भाँति कल्हण की पूर्व कर्मों के फल में अटूट श्रद्धा थीं। अलौकिक शक्तियाँ, यक्ष, किन्नर तथा गन्धर्वो के अस्तित्व में कल्हण का विश्वास था। एक राजा के अधःपतन में महत्वपूर्ण कारक इन्द्रजाल या ब्राह्मण का शाप बताया गया है। दुभिक्ष ईश्वरीय इच्छा से पड़ते हैं। सन्धि-माता की कथा और भी विचित्र है। डाइनें आती हैं और उसकी अस्थियों का पञ्जर इकट्ठा कर देती हैं। राजा हर्ष के पतन में उसके ग्रह प्रतिकूल थे। फलतः भाग्य उसके पक्ष में न था। प्रबन्धकोश में भी अतिमानवीय शक्ति, बेताल, दानवों, परकाया-प्रवेश-विद्या आदि के विवरण दिये हुए हैं । कल्हण और राजशेखर दोनों ने कर्म और पुनर्जन्म के हिन्दू सिद्धान्तों के वर्णन किये हैं। उपदेशात्मक प्रवृत्ति इन दोनों ग्रन्थों में द्रष्टव्य है। ऐसे दोष मध्ययुगीन इतिहासकारों में सामान्य रूप से पाये जाते थे। इन दोनों ग्रन्थों में गुण-दोषों का साम्य होते हुए भी यथेष्ट अन्तर है। कल्हण की राजतरंगिणी के बाद कश्मीर में उसके बराबर का या ऐतिहासिक कहा जाने वाला कोई ग्रन्थ प्रकाश में नहीं आया। परन्तु प्रवन्धकोश के पहले और बाद में उसके निकट आ सकने वाले कम से कम एकाध दर्जन ग्रन्थ प्रकाश में आये हैं जो ऐतिहासिक कहे जा सकते हैं । गुजरात के इतिहासशास्त्र में जयसिंह सूरि ( १३६० ई० ) जिनमण्डनगणि ( १४३६ ई०) आदि ने पूर्ववर्तियों की ऐतिहासिक अनुभूति को बनाये रखा और किसी ने भूगोलशास्त्र में तो किसी ने सांस्कृतिक इतिहास में पूर्ववतियों के दृष्टिकोणों को और विकसित किया। किन्तु कल्हण के उत्तराधिकारियों के सम्बन्ध में ऐसा नहीं कहा जा सकता है । जोनराज, श्रीवर, प्रज्ञाभट्ट और शुक ने ऐतिहासिक क्रमों की कल्हण जैसी पकड़ नहीं प्रदर्शित की। १. सिंह, रघुनाथ : कल्हण, राजतरंगिणी, प्राक्कथन, पृ० २९ । २. कल्हण : राजतरंगिणी, श्लोक १७-५५ व ९२ । ३. वही, सप्तम तरंग, श्लोक १७१५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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