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तुलनात्मक अध्ययन
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अनुसार एक सच्चे इतिहासकार का प्रथम गुण तटस्थ मस्तिष्क रखना होता है जो पूर्वाग्रह और पक्षपातरहित हो। अतीत की घटनाओं का वर्णन करते समय इतिहासकार को एक न्यायिक की भाँति रागद्वेषरहित होना चाहिये । निष्पक्षता के सम्बन्ध में राजशेखर कल्हण से कम नहीं है । व्यक्तियों और घटनाओं का निस्पृह होकर मूल्यांकन करना, ऐतिहासिक विस्तार में सटीकता, भूगोलशास्त्र, ज्योतिष, आयुर्वेद के गहन ज्ञान, व्यक्तियों, कवियों, राजाओं एवं मन्त्रियों तक के दोषों का चित्रण, ये कुछ ऐसे गुण हैं जिनका विचार कर लेने पर आधुनिक इतिहासकार राजशेखर को इतिहासज्ञ की श्रेणी में रख सकता है, परन्तु कल्हण का अत्यन्त उत्साही प्रशंसक भी एक क्षण के लिये ऐसा दावा नहीं करेगा।
कल्हण और राजशेखर दोनों के पास आलोचनात्मक मस्तिष्क थे । एक असाधारण योग्यता, अति परिश्रम और सत्य के प्रतिपादन की इच्छा से युक्त है तो दूसरा दिग्गज विद्वान् और अति परिश्रमशील अध्येता था। कल्हण ने सुव्रत और क्षेमेन्द्र की त्रुटियों का प्रक्षालन किया, उन्हें संशोधित किया और अनेक विवरणों को आँख मूंद कर स्वीकार नहीं किया। राजशेखर भी प्रबन्धचिन्तामणि के प्रबन्धों को दुहराना नहीं चाहता था और उसने कुछ ऐसे विवरण दिये हैं जो जैन-सम्मत नहीं थे।
राजतरंगिणी और प्रबन्धकोश दोनों के दोषों में भी साम्य है। कल्हण में अनेक असफलताएँ और अपूर्णताएँ थीं। राजतरंगिणी की प्रथम तीन तरङ्गों एवं शेष ग्रन्थ में एक विभाजक रेखा सरलतापूर्वक खींची जा सकती है। प्रथम तीन तरङ्गों के प्रारम्भिक राजे अधिकांशतः पौराणिक हैं अथवा विश्वसनीय प्रमाणों से वंचित हैं। आश्चर्य है कि कल्हण ने भारत पर सिकन्दर के आक्रमण, पोरस के साथ युद्ध, चन्द्रगुप्त मौर्य, समुद्रगुप्त, स्कन्दगुप्त, शशांक, 'पुलकेशिन् तथा नागभट्ट के उल्लेख नहीं किये । दार्शनिकों में वह शंकराचार्य को भी भूल गया । प्रमुख गणतन्त्रों का उल्लेख न होना एक समस्या खड़ी कर १. कल्हण : राजतरंगिणी, प्रथम, पद ७। ..
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