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________________ १६० ] प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन वह लौकिक नीतिशास्त्र के मतों से अधिक प्रभावित दीख पड़ता है। कल्हण के इतिहास में धर्म और नैतिकता की शिक्षा सन्निहित है।' __ कल्हण और राजशेखर दोनों की तथ्यों एवं इतिहास के स्रोतों तक पहुँच थी। उसका ग्रन्थ परम्पराओं अनुश्रुतियों और अभिलेखों पर आधारित है । कल्हण ने मुद्राओं एवं प्राचीन स्मारकों का भी अध्ययन किया था जो इतिहास के प्रमुख स्रोत माने जाते हैं।' उसने नीलमत पुराण, क्षेमेन्द्र की नपावलि, हेलराजकृत पार्थीवावलि आदि का सन्दर्भ ग्रहण किया है । उसने महाभारत, हर्षचरित, विक्रमाङ्कदेवचरित तथा वराहमिहिर प्रणोत बृहत्संहिता का विशेष अध्ययन किया था। 'कल्हण ने अपने ग्रन्थ को तैयार करने में प्राचीन इतिवृत्तों के अतिरिक्त मन्दिरों के शिलालेखों, भूदान के प्रमाणपत्रों, प्रशस्तिपट्टों और लिखित शास्त्रों का आश्रय लिया।" कल्हण ने प्रत्यक्षदर्शियों के विवरण भी दिये हैं। ____ इसी तरह राजशेखर ने भी पूर्व अवस्थित अनेक जैन-अजैन ग्रन्थों के अलावा परम्पराओं का प्रभूत उपयोग किया है।' राजतरंगिणी और प्रबन्धकोश दोनों में धर्म-निरपेक्षता पायी जाती है । शैव-धर्म का अनुयायी होते हुए भी कल्हण ने बौद्धों, बोधिसत्वों तथा जैनों को आदर की दृष्टि से देखा । कल्हण ने अशोक तथा अन्य बौद्ध शासकों की और उनके द्वारा मठ व स्तूप-निर्माण की प्रशंसा की है। कहीं-कहीं बौद्ध भिक्षुओं की कट्टरता के प्रति व्यंगात्मक स्वर उच्चारित करने से वह अपने को रोक भी नहीं सका है। कल्हण के १. विण्टरनित्स, हिइलि, भाग १, पृ० ८६ ।। २. कीथ, ए० बी० : ए हिस्टरी ऑफ संस्कृत लिटरेचर, १९२०; पृ० १६२ । ३. बुद्धप्रकाश : इतिहास-दर्शन, पृ० २१; दे० सिंह, रघुनाथ ( भाष्यकार) कल्हण : राजतरंगिणी, वाराणसी, १९६९; प्राक्कथन, पृ० ५ भी। ४. दे. वही। ५. प्रसाद, एस० एन० : कथासरित्सागर तथा भारतीय संस्कृति, प्रथम संस्करण, वाराणसी, १९७८, पृ० १२ । ६. कल्हण : राजतरंगिणी, प्रथम, पद १८४ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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