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तुलनात्मक अध्ययन
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स्थान सर्वोपरि है ।' कल्हण की राजतरंगिणी के अलावा प्राचीन या मध्यकालीन भारतीयों के पास कोई ऐतिहासिक ग्रन्थ नहीं हैं - यह आक्षेप उचित प्रतीत नहीं होता है । जैन इतिहास सम्बन्धी आधुनिक खोजों ने कल्हण के इस दावे का खण्डन कर दिया है कि वही समूचे प्राचीन और मध्यकालीन भारत का इतिहासशास्त्रज्ञ था ।' जैनप्रबन्ध ग्रन्थों में ऐतिहासिकता अत्यधिक है और मेरुतुङ्ग की प्रबन्धचिन्तामणि तथा राजशेखर का प्रबन्धकोश कई मानों में कल्हण की राजतरंगिणी से बढ़कर है । प्रबन्धकोश के स्रोतों, साक्ष्यों, कारणत्व, परम्पराओं, कालक्रम एवं उसमें निहित इतिहास की अवधारणा से सिद्ध होता है कि यह ग्रन्थ प्रभूत ऐतिह्य सामग्री प्रदान करता है ।
कल्हण के इतिहास-लेखन का उद्देश्य था १. कश्मीर के राजाओं का सच्चा कालक्रम और वंशानुक्रम प्रदान करना, २ . पाठकों के चिन्तन व मनोरञ्जन के लिये आहार प्रदान करना । राजशेखर भी इन्हीं उदात्त उद्देश्यों को लेकर चलता है किन्तु अन्तर इतना है कि वह राजनीतिक इतिहास के साथ-साथ धार्मिक आचार्यों और सामान्यजनों का भी इतिहास प्रस्तुत करता है ।
इतिहास की अवधारणा के सम्बन्ध में कल्हण कहता है कि इतिहासकार का उद्देश्य बीते युग को किसी के नेत्रों के सामने सचित्र करना होता है ।" सच्चा इतिहास अनेक महापुरुषों एवं इतिहासकारों को अमरत्व प्रदान करता है । उसने स्वयं अपनी राजतरंगिणी को ऐतिहासिक ग्रन्थ बताने की चेष्टा की है और उसके अनुसार उसने इस ग्रन्थ में इतिहास लिखने का प्रयास किया है ।" यद्यपि कल्हण द्वारा निर्दिष्ट उदात्त इतिहासकार के लक्षण ग्रहणीय हैं तथापि कई स्थानों पर कल्हण ने स्वयं अपने नियमों का उल्लंघन किया है क्योंकि
१. ब्युलर, रिपोर्ट ५२वीं, पृ० ६६ ।
२. हसन, मोहिबुल ( सम्पा० ) : हिस्टोरिएन्स ऑफ मेडिवल इण्डिया, मीनाक्षी प्रकाशन, मेरठ, १९६८, पृ० ग्यारहवाँ ।
३. दे० पूर्ववणित अध्याय ६ व ७ ।
४. कल्हण : राजतरंगिणी, प्रथम, पद ४ ।
५. वही, पद ३ ।
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