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प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन
संग्रह किया गया है, लेकिन तीर्थकल्प से तो कुछ पूरे के पूरे कल्प ( प्रबन्ध ) ही, शब्दशः उद्धृत किये गये हैं । सातवाहनप्रबन्ध, वङ्कचूलप्रबन्ध और नागार्जुन - प्रबन्ध - ये तीनों प्रकरण तीर्थकल्प की पूरी नकल हैं। उसमें सातवाहन का प्रकरण प्रतिष्ठानपुरकल्प' ( क्रमांक ३३-३४, पृष्ठांक ५९-६४ ) में है, वङ्कचूल का विवरण ढींपुरीतीर्थकल्प ( क्रमांक ४३, पृ० ८१-८३ में है, और नागार्जुन का वृत्तान्त स्तम्भनककल्पशिलोञ्छ ( कल्पांक ५९, पृ० १०४ ) में है ।
विविध तीर्थकल्प में स्तम्भनककल्पशिलोञ्छ- प्रबन्ध प्राकृत भाषा में गूंथा हुआ है जिसको राजशेखर ने शब्दशः संस्कृत में अनूदित कर लिया है। ऐसा प्रतीत होता है कि जिनप्रभसूरि ने भी यह प्रकरण सम्भवतः प्रबन्धचिन्तामणि' से संस्कृत से प्राकृत में अनुवाद करके लिख लिया हो, क्योंकि प्रबन्धचिन्तामणि और विविधतीर्थकल्प दोनों में शब्द रचना प्रायः एक-सी है । किन्तु जब प्रबन्धचिन्तामणि के उक्त प्रबन्ध ( पृ० ११९-१२० ) की संस्कृत भाषा की तुलना प्रबन्धकोश के तद्विषयक प्रबन्ध ( पृ० ८४-८६ ) की संस्कृत भाषा से की जाती है तब यह प्रतीत होता है कि दोनों प्रबन्धों में आकार, विषय-वस्तु और वर्णन - शैली में समानता तो है परन्तु शब्द रचना उतना मेल नहीं खाती है, जितना प्रबन्धचिन्तामणि और विविधतीर्थकल्प में । फिर भी प्रबन्धकोश और विविधतीर्थकल्प में विषय-वस्तु, तथ्यों एवं पदों की साम्यता अत्यधिक है |
(५) राजतरंगिणी
संस्कृत साहित्य की अनूठी निधि राजतरंगिणी में प्रारम्भिक काल से १२वीं शताब्दी तक के कश्मीर का इतिहास मिलता है जिसमें लगभग ८००० संस्कृत-पद्य हैं । संस्कृत के ऐतिहासिक ग्रन्थों में इसका
१. प्रबन्धकोशागत सातवाहन प्रबन्ध के ८९, ९० और ९१, ये तीन प्रकरण वितीक में नहीं हैं । दे० वितीक, पृ० ९
२. प्रकीर्णक प्रबन्धान्तर्गत नागार्जुनोत्पत्ति-स्तम्भनक
तीर्थावतारप्रबन्ध,
प्रचि, पृ० ११९ - १२० तथा दे० इसी अध्याय में पूर्वोक्त टि० २१ । ३. हिइलि, भाग १, पृ० ९५ ॥
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