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________________ तुलनात्मक अध्ययन [ १६५ इतना ही नहीं पुरातनप्रबन्धसंग्रह के इस प्रबन्ध के रचयिता का उद्देश्य तो विशेषकर केवल उन्हीं बातों को संग्रह करना है, जो प्रबन्धकोशगत वस्तुपाल-तेजपाल प्रबन्ध में अनुल्लिखित रहीं हैं। "इस बात का उल्लेख प्रबन्ध-प्रणेता ने स्वयं प्रकरण के प्रारम्भ ही में 'अथ श्रीवस्तुपालस्य २४ प्रबन्धमध्ये यन्नास्ति तदत्र किञ्चिल्लिख्यते', यह पंक्ति लिखकर किया है। इससे यह प्रतीत होता है कि इसका प्रणयन ( सम्भवतः १४४० ई. के आसपास ) राजशेखरकृत प्रबन्ध के पश्चात् हुआ होगा । अतः दोनों ग्रन्थों में विषय-सामग्री का विनिमय हुआ है। (४) विविधतीर्थकरूप जिनप्रभसूरि रचित 'विविधतीर्थकल्प' या 'कल्पप्रदीप' जैन ऐतिहासिक और भौगोलिक साहित्य की एक अमूल्य निधि है। जैनसाहित्य में इस प्रकार का कोई दूसरा ग्रन्थ अभी तक ज्ञात नहीं हुआ है। विविधतीर्थकल्प में जैनों के प्राचीन और प्रसिद्ध तीर्थस्थलों का वर्णन है, जिसमें कुल ६२ कल्प ( अध्याय ) हैं। विविधतीर्थकल्प के विभिन्न प्रवन्ध संस्कृत और प्राकृत, गद्य और पद्य, दोनों में भिन्न-भिन्न समय और भिन्न-भिन्न स्थानों में लिखे गये हैं जिससे इनमें किसी प्रकार का व्यवस्थित क्रम नहीं रह सका।' ग्रन्थ में आये विभिन्न स्थान गुजरात, काठियावाड़, उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजपूताना और मालवा, अवध और बिहार, दक्षिण, कर्नाटक आदि में पड़ते हैं। पीटर्सन की बम्बई क्षेत्र की रिपोर्ट में विविधतीर्थकल्प का परिचय दिया गया था। कालान्तर में ए० पी० पण्डित तथा व्युलर ने भी इसका उपयोग किया। प्रभावकचरित और प्रबन्धचिन्तामणि से जितनी सामग्री प्रबन्धकोश में ली गई है उससे कहीं अधिक वस्तु विविधतीर्थकल्प से ली गई है। उक्त प्रथम दो ग्रन्थों से तो प्रधानतया वस्तु और वक्तव्य का ही १. जिनविजय ( सम्पा० ) पुप्रस, प्रास्ताविक वक्तव्य, पृ० २४ । २. वितीक, प्रा. निवेदन, पृ० १ । ३. द्रष्टव्य, पीटर्सन : ए फोर्थ रिपोर्ट ऑफ ऑपरेशन इन सर्च ऑफ़ संस्कृत मैन्युस्क्रिप्ट्स इन द बाम्बे सकिल, १८८६-९२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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