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प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन
'कि राजशेखरसूरि ने प्रभावकचरित में से उतनी वस्तु नहीं ली जितनी प्रबन्ध - चिन्तामणि में से ली है । " किन्तु तीनों ग्रन्थों के विभिन्न प्रबन्धों की परस्पर तुलना से तथा सम्बद्ध तालिका का अध्ययन करने से जिनविजय का मत सही नहीं प्रतीत होता है । वस्तुतः राजशेखर ने प्रबन्धकोशान्तर्गत प्रभावकचरित से अधिक ग्रहण किया है, प्रबन्धचिन्तामणि से कम । इसका कारण एक तो यह है कि प्रभावकचरित प्रबन्धचिन्तामणि से अधिक प्राचीन है । दूसरे, गद्य की अपेक्षा पद्य को स्मरण रखना और उद्धृत करना अधिक सरल होता है । तीसरे, प्रभावक-चरित की अपेक्षा प्रबन्ध- चिन्तामणि बहुचर्चित और अधिक लोकप्रिय रही होगी । अतः उसमें से प्रत्यक्षतः उद्धृत करने पर काव्य-हरण का स्पष्ट दोषारोपण हो जाता ।'
तीन दृष्टियों से राजशेखर का प्रबन्धकोश प्रबन्धचिन्तामणि का पूरक ग्रन्थ है । एक तो जिन-जिन सूरियों, कवियों और राजाओं के बारे में प्रबन्ध - चिन्तामणि में नहीं लिखा गया या कम लिखा गया, उनके बारे में राजशेखर विस्तार से लिखता है । दूसरे, प्रबन्धचिन्तामणि में गुजरात के चौलुक्यों के साथ मेरुतुङ्ग ने परमारों का वर्णन किया तो राजशेखरने उनके साथ चाहमानों का वर्णन किया । अन्ततः गुजरात के चौलुक्यों का विशद वर्णन करने के पश्चात् प्रबन्धचिन्तामणि में वाघेलों का अत्यन्त संक्षिप्त विवरण है । जहाँ पर मेरुतुङ्ग वाघेलों का इतिहास छोड़ता है वहाँ से राजशेखर उस सूत्र को पकड़कर वाघेलों के इतिहास का विस्तृत वर्णन करता है । इस प्रकार प्रबन्धको प्रबन्धचिन्तामणि का पूरक ग्रन्थ है ।
(३) पुरातन प्रबन्ध संग्रह
'पुरातन प्रबन्ध संग्रह ' प्रबन्धचिन्तामणि ग्रन्थागत प्रबन्धों के साथ सम्बन्ध और समानता रखने वाले ६३ प्राचीन प्रबन्धों का विशिष्ट संग्रह है । इन प्रबन्धों के कुछ प्रकरण ऐसे हैं जो प्रबन्धचिन्तामणि में तो नहीं हैं लेकिन प्रबन्धकोश में हैं और कई प्रकरण दोनों की पूर्ति के लिये ही लिखे गये प्रतीत होते हैं । उदाहरणार्थ पुरातनप्रबन्धसंग्रह
१. प्रको, प्रा० वक्तव्य, पृ० २ |
२. दे० प्रचिद्वि, प्रा० वक्तव्य, पु० क ख ।
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