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________________ तुलनात्मक अध्ययन [ १६१ परन्तु प्रबन्धचिन्तामणि के वस्तुपालप्रबन्ध से प्रबन्धकोश का अन्तिम प्रबन्ध बहुत ही विस्तृत है।' निःसन्देह प्रबन्धकोश का यह सर्वाधिक बड़ा प्रबन्ध तीस बृहदाकार पृष्ठों का है। राजशेखर ने आसराज द्वारा कुमारदेवी के अपहरण और उससे विवाह, उसकी कुक्षि से वस्तुपाल-तेजपाल के जन्म-वृत्तान्त, मन्त्री बनने, देश-भ्रमण, वामनस्थली और पञ्चग्राम के युद्ध, वीरधवल के युद्ध-दर्शन, सेना के योजनाबद्ध प्रयाण, गुजरात की नृपावली, इतिहासशास्त्रीय दृष्टि से अनेक परम्पराओं के वर्णन, म्लेच्छों के अभियानों आदि के सविस्तर वर्णन किये हैं। ___ प्रबन्ध-चिन्तामणि की तरह प्रबन्धकोश में अन्य धर्मों के विषय की बातें उतने ही आदर से लिखी गई हैं जितने अपने धर्म की। मूलराजप्रबन्ध में शिवपूजा के प्रभाव और शैवाचार्य कंथडी की तप-महिमा का वर्णन किसी जिनपूजा या जैनाचार्य के वर्णन से कम आदरयुक्त नहीं है।' इसी तरह सिद्धराज की माँ मयणल्ला की शिवभक्ति का वर्णन भी निष्पक्ष-भाव से ओत-प्रोत है। राजशेखर का भी दृष्टिकोण धर्मनिरपेक्षता से परिपूर्ण है। परन्तु प्रबन्धचिन्तामणि के सभी प्रबन्ध ऐतिहासिक नहीं हैं जबकि प्रबन्धकोश के सभी ( चौबीसों) प्रबन्ध ऐतिहासिक हैं, क्योंकि वङ्कचूलप्रबन्ध और रत्नश्रावकप्रबन्ध की ऐतिहासिकता स्थापित की जा चुकी है । प्रबन्धचिन्तामणि के अन्तिम प्रकाश के पुण्यसार, कर्मसार, वासना, ५-७ प्रबन्ध ऐसे हैं, जो पौराणिक ढंग के कथात्मक रूप हैं। उनमें ऐतिहासिकता खोज निकालना निरर्थक है। प्रबन्धचिन्तामणि के विक्रमार्क तथा सातवाहन राजा के विवरण का नामों के अलावा कहानी की अपेक्षा अन्य कोई अधिक महत्व नहीं है। भूयराज प्रबन्ध में उसके अस्तित्व के विषय का अभी तक कोई ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं हुआ है। जिनविजय ने प्रबन्धकोश के प्रास्ताविक वक्तव्य में स्पष्ट कहा है १. तुलनीय प्रको, पृ० १०१-१३० तथा प्रचि, पृ० ९८-१०५ । २. दे० प्रचि, पृ० १८ । ३. दे० वही, पृ० ५७-५८ । ११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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