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________________ १६० ] प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन ऐसा प्रबन्ध है जो पद्य में आबद्ध है। परन्तु प्रबन्धचिन्तामणि से विषय-वस्तु ग्रहण करते हुए उक्त प्रबन्ध को पद्याकार बनाने के लिए राजशेखर ने इस प्रबन्ध को नया रूप प्रदान करने का प्रयत्न किया राजशेखर ने सातवाहनों पर प्रबन्धचिन्तामणि की अपेक्षा अधिक विस्तृत और सूचनापरक प्रबन्ध लिखा । प्रबन्धचिन्तामणि में विक्रमादित्य राजा के विवरण के बाद सातवाहन राजा का प्रबन्ध दिया हआ है जो कालक्रमीय दोष है। इसका प्रक्षालन राजशेखर ने प्रबन्धकोश में सातवाहन के पश्चात् विक्रमादित्य का उल्लेख करके किया है।' प्रबन्धचिन्तामणिका विक्रमार्कराजो का प्रबन्ध छोटा है और तथ्य-गल्प मिश्रित है। प्रबन्धकोश में इस विवरण को रोचक बनाया गया है। चारों काष्ठ पुतलियों की व्यंगात्मक हँसी और उनके माध्यम से इतिवृत्त का वर्णन कुतूहल की अभिवृद्धि करता है। राजशेखर ने विक्रमादित्य के इस प्रबन्ध को चित्रमात्र अर्थात् काल्पनिक घोषित कर ऐतिहासिक न्याय का परिचय दिया है। नागार्जुन से सम्बन्धित दोनों ग्रन्थों के प्रबन्धों के आकार, विषयवस्तु और वर्णन-शैली में समानता तो है परन्तु शब्द-रचना उतनी मेल नहीं खाती है, जितना प्रबन्धचिन्तामणि और विविधतीर्थकल्प में । फिर भी इस मान्यता को दृष्टगत रखना ही पड़ता है कि प्राकृत से संस्कृत अनुवाद करते समय राजशेखर ने प्रबन्धचिन्तामणि के उक्त ग्रन्थ को भी, जो संस्कृत में लिखा हुआ है, अपने समक्ष अवश्य रखा होगा। प्रबन्धकोशान्तर्गत लक्षणसेन तथा आभड़ के प्रबन्ध प्रबन्धचिन्तामणि वालों की अपेक्षा आकार में अधिक विस्तृत और तथ्यपरक हैं। १. तुलनीय प्रको, पृ० २१-२३ और प्रचि, पृ० १०६-१०७ । २. दे० प्रको, पृ० ७८-८४ तथा प्रचि, पृ० १-१० । ३. तुलनीय प्रको, पृ० ८४-८६ तथा प्रचि, पृ० ११९-१२० । इसी अध्याय में आगे दे० टि० ४२ भी। ४. तुलनीय प्रको, पृ० ८८.९०, ९७-१०० तथा प्रचि, पृ० ११२-११३, पृ० ६९-७०। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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