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तुलनात्मक अध्ययन
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प्रबन्धचिन्तामणि के वर्णन संक्षिप्त और सामासिक शैली में हैं जबकि प्रबन्धकोश के तनिक विस्तृत और विश्लेषणात्मक हैं । राजशेखर ने अनेक नवीन बातों का भी समावेश किया है। हेमचन्द्रसूरि के जीवन के सम्बन्ध में जो-जो बातें प्रबन्धचिन्तामणि ग्रन्थ में लिखी गई हैं, उनका वर्णन राजशेखर नहीं करना चाहता, बल्कि उसके अतिरिक्त कुछ नवीन प्रबन्ध ही कहना चाहता है ।"
वस्तुपालप्रबन्ध में प्रबन्धचिन्तामणि की अपेक्षा चौलुक्य- चाहमान संघर्ष, मन्त्रिपरिषद, परिषद सदस्य, कोषागार, मण्डल - सिद्धान्त, विविध प्रकार के खेलों, कुमारपाल - आनाक सम्बन्ध, कालक्रमों और कारणत्व की विशिष्ट और विश्वसनीय वातों का सङ्कलन किया हुआ अवश्य मिलता है । परन्तु प्रबन्धचिन्तामणि के भोज-भीम प्रबन्ध में भोजपरमार के साथ बाण, मयूर, मानतुङ्ग माघ आदि का समकालीनत्व जोड़ा गया है, जो सर्वथा भ्रान्त और निराधार है । " छठीं शताब्दी का महान् ज्योतिषाचार्य वराहमिहिर बिना किसी झमेले के चौथी शताब्दी ई० पू० के नन्दराजा का समकालीन बना दिया गया है ।"" कालक्रम सम्बन्धी ऐसा भयंकर दोष प्रबन्धकोश के एक भी स्थल पर नहीं है । जहाँ तक अतिमानवीय व दैवी तत्वों का प्रश्न है दोनों ही ग्रन्थों में इनके यत्र-तत्र उल्लेख मिलते हैं ।
प्रबन्धचिन्तामणि और प्रबन्धकोश के गद्यों और पद्यों दोनों में समानताएँ परिलक्षित होती हैं । दीक्षाकाल में सिद्धसेन का नाम कुमुदचन्द्र रखा गया था जो 'सिद्धसेन दिवाकर' नाम से प्रसिद्ध हुए । प्रबन्धकोश का वाद - वाद-विवाद वर्णन प्रबन्धचिन्तामणि के वर्णन पर आधारित है । राजशेखर को यह जानकारी कि 'कुमुदचन्द्र' दिगम्बर था मेरुतुङ्ग से प्राप्त हुई । मल्लवादि प्रबन्ध राजशेखरसूरि का एकमात्र
१. जिनविजय ( सम्पा० ), प्रको, प्रा० वक्तव्य, पृ० २ व प्रको, पृ० ४७ तथा प्रचिद्धि, प्रा० वक्तव्य, पृ० क ।
२. जिनविजय प्रको, प्रा० वक्तव्य, पृ० २ तथा प्रको, पृ० १०१-१३० ।
३. प्रचिद्धि, प्रा० वक्तव्य, पृ० ६ ।
४. विण्टरनित्ज, हिइलि, पृ० ५२० । ५. तुलना कीजिये प्रको, पृ०
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१५ १७ और प्रचि, पृ० ६६-६८ ।
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