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________________ १५६] प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन ___ सातवाहन और नागार्जुन के कुछ विवरण पादलिप्तसूरि के चरितान्तर्गत मिलते हैं और कुछ विक्रमादित्य विषयक प्रसङ्ग वृद्धवादि सूरि प्रबन्ध में मिलते हैं। इससे ज्ञात होता है कि राजशेखरसूरि ने प्रभावकचरित से यथेष्ट सामग्री ली है। राजशेखर ने जिन दस आचार्यों के वर्णन किये हैं, उनमें से नौ के विवरण प्रभावकचरित के आधार पर किये गए हैं। प्रथम प्रबन्ध भद्रबाहुवराह का वर्णन करते समय प्रभावकचरित की सहायता नहीं ली गयी है। (२) प्रबन्धचिन्तामणि बढवान ( सुरेन्द्रनगर गुजरात ) ने प्रबन्धचिन्तामणि का समापन १३०५ ई० में तथा दिल्ली ने प्रबन्धकोश का प्रणयन १३४९ ई० में देखा। "चाहे मेरुतुङ्गसूरि को इतिहास के आत्मा का दिव्य दर्शन हुआ हो या न हुआ हो, पर इसमें कोई शक नहीं कि उनका यह ग्रन्थलेखन, सचमुच इतिहास-दर्शन की एक अस्पष्ट पर सूक्ष्म कला के आभास का उत्तम सूचन करता है।"' ग्रन्थारम्भ में वह कहता है कि 'बारम्बार सुनी जाने के कारण पुरानी कथायें बुद्धिमानों के मन को वैसा प्रसन्न नहीं कर पातीं। इसलिये मैं निकटवर्ती सत्पुरुषों के वृत्तान्तों से इस प्रबन्धचिन्तामणि ग्रन्थ की रचना कर रहा हूँ।" ग्रन्थान्त में मेरुतुङ्ग का आशय है कि उसने शास्त्रों को नष्ट होने से बचाने के लिए प्रबन्धचिन्तामणि की रचना की। राजशेखर द्वारा ग्रन्थ-रचना के उद्देश्य इससे मिलते-जुलते हैं।' प्रबन्धकोश में उल्लिखित दस व्यक्तियों के विवरण प्रबन्धचिन्तामणि में मिलते हैं जिनमें से चार आचार्य, चार राजा और दो राजमान्य जैन गहस्थ हैं। १. प्रचिद्धि, प्रा० वक्तव्य । २. भृशं श्रुतत्वान्न कथाः पुराणाः प्रीणन्ति चेतांसि तथा बुधानाम् । वृत्तस्तदासन्नसतां प्रबन्धचित्तामणिग्रन्थमहं तनोमि ॥ ६ ॥ प्रचि, पृ० १। ३. वही, पृ० १२५, श्लोक १ । ४ दे० पूर्ववणित अध्याय ३ में 'रचना-उद्देश्य' उपशीर्षक । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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