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________________ तुलनात्मक अध्ययन [ १५७ गया चरित उनके विषय में उपलब्ध सभी चरितों से प्राचीन कहा जा सकता है। प्रबन्धकोश की भाँति प्रभावकचरित की सामग्री अपने पूर्ववर्ती आचार्यों की कृतियों से तथा प्रचलित अनुश्रुतियों (आख्यानों) से ली गई है। प्रभाचन्द्र ने अपने उद्देश्य में सम्पूर्ण सफलता प्राप्त की। प्रभावकचरितकार का प्रधान उद्देश्य अपने समय से पहले के प्रभावशाली जैनाचार्यों का चरित्र-गुम्फन करना है। ऐसा ही प्रबन्धकोशकार ने भी किया है। रचना की दृष्टि से प्रभावकचरित उच्चकोटि का है। इसकी भाषा प्रावाहिक और प्रासादिक है। वर्णन सुसम्बद्ध है। 'कवियों और प्रभावशाली धर्माचार्यों का ऐतिहासिक वर्णन करने वाला इस कोटि का और दूसरा ग्रन्थ समन संस्कृत साहित्य में उपलब्ध नहीं है।'३ प्रभावकचरित वाद-विवाद प्रतिस्पर्धा, जैन तीर्थों एवं मन्दिरों का आविर्भाव जैन-समाज के विकास-क्रम तथा तथ्यपूर्ण इतिहास पर प्रकाश डालता है। प्रबन्धकोश की प्रधान-सामग्री प्रभावकचरित से ही एकत्रित की गई प्रतीत होती है। प्रबन्धकोश में भद्रबाहु, आर्यनन्दिल, जीवदेव, वृद्धवादि, आर्यखपट, पादलिप्त, सिद्धसेन, मल्लवादी, हरिभद्र, बप्पभट्टि और हेमचन्द्र सूरि के चरित संगृहीत हैं। प्रभावकचरित में दिये गए इन आचार्यों के चरितों से तुलना करने पर ज्ञात होता है कि राजशेखर के सम्मुख इन आचार्यों के चरितविषयक अन्य कोई संग्रह भी रहा होगा जिससे उन्होंने आचार्यविषयक प्रबन्धों के लिए कितनी सामग्री संगृहीत की है, क्योंकि इन आचार्यों के चरितों में कई ऐसी बाते हैं जो प्रभावकचरित में नहीं मिलती और प्रभावकचरित की कई बातें इसमें नहीं मिलतीं। प्रबन्धकोशकार ने प्रभावकचरित के २२ आचार्यों में से ९ आचार्यों को चुनकर अपने प्रबन्धकोश का विषय बनाया। १. दे० प्रभाच, प्रा० वक्तव्य, पृ० ५ । २. दे० प्रको, प्रा० वक्तव्य, पृ० २। ३. वही, पृ० ६ । ४. प्रभाच, प्रा० वक्तव्य, पृ०६। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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