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अध्याय
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तुलनात्मक अध्ययन
तुलनात्मक अध्ययन में एक कृति की उसी भाषा या अन्य भाषा की दूसरी कृतियों से तुलना की जाती है जिससे एक ग्रन्थ के गुणों का ज्ञान दूसरे ग्रन्थों का अध्ययन करने से बढ़ जाता है । तुलना करने का आशय है गुण, आकार, विचार, अवतरण आदि की समता और विषमता दोनों का मूल्यांकन करना । पाश्चात्य विद्वान् टॉनी ने जैनप्रबन्धों की जैन-धर्म के प्रति रुझान की आलोचना की है । टॉनी के मतानुसार जैन- प्रबन्धकारों से थ्यूसीडिडियन इतिवृत्त अथवा टैसिटस जैसी परिपक्व बुद्धिमत्ता की आशा करना व्यर्थ है । उसने जैन इतिवृत्तकारों को मध्ययुग के यूरोपीय एवं अरबी इतिवृत्तकारों से नीचे स्थान प्रदान किया है । "
भारतीय इतिहास ग्रन्थों और इतिहासकारों पर इस आक्षेप के दो उत्तर हैं । एक तो धर्म की महत्ता का वर्णन दोष नहीं मानना चाहिये, क्योंकि जिस युग में इनकी रचना हुई वह युग ही ऐसा था । ब्राह्मण, शैव, मुसलमान और ईसाई ग्रन्थकारों ने भी यही किया । दूसरे, ये पश्चिमी विद्वान् मध्ययुगीन यूरोपीय व अरबी इतिवृत्तों के विषय में अधिक जानते थे, जबकि उस समय तक न तो पश्चिमी संसार के सामने अधिकांश जैन - प्रबन्ध प्रकाश में आये थे और न उन पर अधिक शोध कार्य हुए थे । किन्तु इस आक्षेप का सही प्रत्युत्तर तब ही दिया जा सकता है जब प्रबन्धकोश की अन्य जैन - प्रबन्धों, ब्राह्मण इतिहास ग्रन्थों, मुस्लिम, अरबी और ईसाई ग्रन्थों से तुलना की जाय । समान विषयक अभ्य ग्रन्थों से प्रबन्धकोश की तुलना
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" विस्तृत जैन- इतिहास की रचना के लिये जिन ग्रन्थों में से विशिष्ट सामग्री प्राप्त हो सकती है उनमें - ( १ ) प्रभावकचरित्र, १. फाउलर ऐण्ड फाउलर : द कॉन्साइज ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी ऑफ़ करेण्ट इंग्लिश, बम्बई, १९८३, पृ० १९१ ।
२. प्रचिटा, प्रस्तावना, पृ० पष्ठ |
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