SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 179
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५४ - प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन ही मार्ग तय होते जायेंगे। यदि राजशेखर द्वारा वीर संवत् में प्रदत्त विक्रमादित्य की तिथि (= ५७ ई० पू० ) को छोड़ दिया जाय तो प्रबन्धकोश ने वि० सं० ३७५ ( = ३१८ ई० ) से वि० सं० १४०५ । = १३४९ ई० ) तक लगभग एक हजार तीस वर्षों की औसतन कालक्रमीय अवधि को सम्पूर्ण किया है, जिसके लिए प्रबन्धकार का प्रयास स्तुत्य है। कालक्रमीय दृष्टिकोण से प्रबन्धचिन्तामणि के बाद प्रबन्धकोश ही अन्य सुलभ जैन-प्रबन्धों में अकेला ऐसा उदाहरण है जो प्रायः सही और सूक्ष्म तिथियाँ प्रदान करता है। यद्यपि प्रबन्धकोश की कतिपय तिथियाँ कुछ महीनों या दिनों की गणना में त्रुटिपूर्ण हैं, तथापि यह सहज निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि राजशेखर जैन प्रबन्धकारों में प्रथम लेखक है जिसने कालक्रम को इतिहास का एक अभिन्न अंग माना है और उसका निर्वाह भी किया है। अतः स्रोत, साक्ष्य, कारणत्व, परम्परा और कालक्रम की कसौटी पर राजशेखर का प्रबन्धकोश खरा उतरता है और उसके इतिहासदर्शन की झलक मिल जाती है । १. स्टीन, ओटो : प्रस्ताविक नोट, द जिनिस्ट स्टडीज, (सम्पा० ) जिनविजय, अहमदाबाद, १९४८, पृ० पाचौं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy