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राजशेखर का इतिहास दर्शन : कारणत्व, परम्परा एवं कालक्रम [ १५३
अन्त में राजशेखर पाँच बहुमूल्य तिथियाँ प्रदान करता है । वह बताता है कि वि० सं० ६०८ ( ५५१ ई० ) राजा वासुदेव सपादलक्षीय चाहमान वंश में हुआ । किन्तु इस तिथि की प्रामाणिकता सिद्ध करने का कोई पक्का तुलनात्मक साधन नहीं है । वीर पृथ्वीराज ( तृतीय ) जो सपादलक्ष का चाहमानवंशीय राजा था उसने सं० १२३६ ( ११७८ ई० ) में राज्य सँभाला और १२४८ ( ११९२ ई० ) में मृत हुआ यह तिथि आज तक सर्वमान्य है । सपादलक्ष के चाहमानवंशीय ३७ वें और अन्तिम राजा हम्मीरदेव ने सं० १३४२ ( १२८५ ई . ) में राज्य सँभाला और १३५८ ( १३०१ ई० ) में युद्धक्षेत्र में मृत हुआ ।' राजशेखर द्वारा प्रदत्त तिथि तो सही है परन्तु हम्मीरदेव सपादलक्ष का चाहमान न होकर रणथम्भौर का चाहमान था ।
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राजशेखर द्वारा प्रदत्त तिथियों के कई गुण हैं । प्रथमतः तिथियों के सम्बन्ध में वह वीर तथा विक्रम संवत्सर दोनों पद्धतियों को अपनाता है । अपने समय से लगभग हजार वर्षों की दूरी से वह कालक्रमीय सूचना प्राप्त करता है । हम लोगों को उससे यह आशा नहीं करनी चाहिये कि वह यह बताए कि उसने कालक्रमीय तथ्यों को कहाँ से एकत्र किया है । तृतीयतः राजशेखर द्वारा प्रदत्त तिथियों में सटीकता है । चापोत्कट वंशावली चालुक्यराज वंशावली और सपादलक्षीय चाहमान वंश की राजवंशावली में यह सटीकता स्पष्ट दीख पड़ती है । कालक्रम में संवत्सर, मास, पक्ष, तिथि, वार, नक्षत्र आदि जैसे सूक्ष्मातिसूक्ष्म विवरण दिये रहते हैं । अन्ततः राजशेखर अनैतिहासिक कालक्रम को अपनाता ही नहीं । उसने कोई भी कल्पित या गढ़ी हुई तिथि प्रदान नहीं की है। वृद्धवादि - सिद्धसेन के बारे में वह लिखता तो अत्यन्त विस्तार से है किन्तु एक भी तिथि नहीं देता है । यह उसकी ईमानदारी का प्रतीक है ।
कालक्रम के बिना भारत के न तो अतीत की और न वर्तमान की कल्पना सम्भव है | जितनी ही तिथियाँ हम प्राप्त करते जाएँगे उतने
१. दे० वही, पृ० १३४ ।
२. संवत् १३४२ राज्यं । १३५८ युद्धे मृतः ।
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प्रको, पृ० १३४ तथा पाहिनाइजैसो,
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पृ० १४४ ।
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