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राजशेखर का इतिहास-दर्शन : कारणत्व, परम्परा एवं कालक्रम [ १४९ ऐतिहासिक तथ्य है।
परन्तु राजशेखर ने बप्पभट्टिसूरि प्रबन्ध, वस्तुपाल प्रबन्ध तथा ग्रन्थकार प्रशस्ति में जो तिथियाँ प्रदान की हैं वे सूक्ष्मातिसूक्ष्म कालक्रम के नमूने हैं। इनमें संवत्सर, मास, पक्ष, तिथि, नक्षत्र और वार तक दिये हुए हैं । बप्पभट्टिसूरि प्रबन्ध में ऐसी सूक्ष्म रीति से वह तीन तिथियों के उल्लेख करता है । वह कहता है कि बप्पभट्टिसूरि का जन्म विक्रमादित्य से ८०० वर्ष ( तदनुसार ७४३ ई० ) बीत जाने पर भाद्रपद शुक्ल तृतीय रविवार के हस्त-नक्षत्र में हुआ।' विक्रमादित्य के काल से आठ सौ संवत्सर से सात अधिक (वि० सं० ८०७ तदनुसार ७५० ई. ) व्यतीत हो जाने पर वैशाख माह शक्ल पक्ष तृतीया गुरुवार को सिद्धसेनाचार्य सूरपाल ( बप्पभट्टि ) को लेकर मोढेरक गये तथा विक्रम संवत् में आठ सौ पर ग्यारह ( वि. सं. ८११ तदनुसार ७५४ ई. ) बीत जाने पर चैत्य माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन बप्पभट्टिसूरि हुए।' ये दोनों तिथियाँ सही प्रतीत होती हैं क्योंकि एक तो इनमें वर्ष, माह, पक्ष, तिथि और वार तक के सूक्ष्म उल्लेख हैं जिससे कम से कम संवत्सर के त्रुटिपूर्ण होने की कम सम्भावना है
और दूसरे प्रभावकचरित द्वारा प्रदत्त सूक्ष्म कालक्रम से उक्त दूसरी व तीसरी तिथियों का अनुमोदन हो जाता है। पहली तिथि की भी १. जैपइ, पृ० ३९३-४०० में इसी तिथि को मान्यता दी गयी है।
विस्तृत विवरण के लिए दे० इण्डियन हिस्टोरिकल क्वार्टरली,
१९४७ भी। २. "श्रीबप्पभट्टिसूरीणां श्रीविक्रमादित्यादष्टशतवर्षेषु गतेषु भाद्रपदे
शुक्ल तृतीयायां रविदिने हस्तक्षैजन्म "" ... " प्रको, पृ० ४५ । ३. "शताष्टके वत्स राणां गते विक्रमकालतः । सप्ताधिके राधशुक्लतृतीयादिवसे गुरौ ॥"
प्रको, पृ० २७ तुलना कीजिये प्रभाच, पृ० ८०, श्लोक २८ । ४. "एकादशधिके तत्र जाते वर्षशताष्टके । विक्रमात्सो भवत्सूरिः कृष्णचैत्राष्टमीदिने ।"
प्रको, पृ० २९ तुलना कीजिये प्रभाच, पृ० ८३, श्लोक ११५। ५. दे. पूर्वोक्त टि० १२१ व १२२ ।
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