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________________ १४८ ] प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन सही है, जिसके साथ ही साथ वह महावीर की मृत्यु और विक्रमादित्य के राज्यारोहण के बीच ४७० वर्ष का जो अन्तराल बताता है वह भी सटीक है । राजशेखर के कालक्रम की एक विशेषता यह भी है कि उसने महावीर - निर्वाण के अतिरिक्त नेमि निर्वाण को काल-मापन का आधार माना है । वह कहता है कि "नेमिनाथ के निर्वाण से आठ सहस्र वर्ष व्यतीत हो चुके थे । उसी समय पट्टमहादेव नामक अतिशय ज्ञानी नवहुल्लपत्तन ( नौशहरा, कश्मीर ) में रहते थे ।" राजशेखर ने यहाँ पर काल-मापन में त्रुटि की है और अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन किया है । आठ सहस्र वर्ष वाला कालक्रम आलोच्य है । राजशेखर मल्लवादि प्रबन्ध में वलभीभङ्ग की ३७५ वि० सं० ( ३१८ ई० ) तिथि प्रदान करता है । यह तिथि विश्वसनीय नहीं प्रतीत होती है क्योंकि चौथी शताब्दी में अरबी या तुर्क म्लेच्छ भारत में नहीं आये थे । वलभी भंग की घटना खलीफा हारुन रशीद के गद्दी पर बैठने ( ७८९ ई० ) के बाद हुई होगी जिसने सलीम यूनूसी को अलमंसूर (सिंध की अरब राजधानी का गवर्नर नियुक्त किया था जो चार वर्षों ( ७८६ - ९० ई० ) तक गवर्नर रहा भी था । अतः म्लेच्छ राजा की पहचान सलीम यूनुसी से ही की जानी चाहिये । इस तरह वि० सं० ८४५ ( ७८८ ई० ) में वलभी-भंग हुआ, यह एक १. प्रको, पृ० ९३ । २. दे० पूर्ववर्णित अध्याय ५, ऐति० तथ्य, रत्नश्रावकप्रबन्ध । सम्पा० जिनविजय की भूल से मूल के कोष्ठक में जो गलत है । तुलना कीजिये प्रचि, पृ० १०८-१०९; वितीक, पृ० २९ । ३. प्रको, पृ० २३, ५७३ लिखा है, पुस, पृ० ८३ ४. बाख्त्री - यवन, शक, पह्लव, कुषाण आदि की पहचान म्लेच्छराज से नहीं की जा सकती है, क्योंकि इनके आक्रमणों के बाद ही ३१८ ई० तक गुप्त साम्राज्य की नींव पड़ चुकी थी । इसमें सन्देह नहीं कि लिच्छवियों को मनु- संहिता में व्रात्य क्षत्रिय ( निम्नकोटि का क्षत्रिय ) और कौमुदी महोत्सव ( ३४० ई० ) में म्लेच्छ कहा गया है, फिर भी लिच्छवि म्लेच्छ नहीं है । प्रायः मुसलमानों को ही म्लेच्छ कहा जाता रहा है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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