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________________ राजशेखर का इतिहास-दर्शन : कारणत्व, परम्परा एवं कालक्रम [ १४७ प्रयोग किये हैं जिनसे उसके काल के समकालिक इतिहास की झलक मिल जाती है। ___ समाज में काल-मापन ऐतिहासिक परिवर्तनों के साथ विकसित और परिवर्तित होता रहता है। पहले-पहल काल का मापन प्राकृतिक घटनाओं के आधार पर होता था। कालान्तर में प्रसिद्ध राजाओं के राज्यकाल अथवा किसी विशिष्ट व्यक्ति के क्रिया-कलापों से कालगणना की जाने लगी। उदाहरण के लिये राजशेखर वस्तुपाल के मन्त्री-पद के गौरव का वर्णन करने के बाद कहता है-~-"तत्पश्चात् विक्रमादित्य से १२९८ वर्ष व्यतीत हो गये।" तदनुसार १२४१ ई० की तिथि प्राप्त होती है जो राजा विक्रमादित्य के राज्य-काल से गणना करके निकाली गयी है। - राजशेखर ने महावीर के निर्वाण-काल ( ५२७ ई० पू० ) को भी आधार माना है। राजशेखर ने वीर संवत्सर का प्रयोग करते हुए कहा है कि श्रीवीर के मोक्षगमन से ६४ वर्ष पश्चात् चरमकेवली जम्बू स्वामी को सिद्धि प्राप्त हुई और स्थूलभद्र को स्वर्ग गये १७० वर्ष व्यतीत हुए।' महावीर का मोक्षगमन ५२७ ई० पू० मानने से जम्बू स्वामी की सिद्धि प्राप्ति ( मोक्ष ) तिथि ४६३ ई० पू० ठहरती है। स्थूलभद्र के स्वर्ग-गमन की तिथि उसके १७० वर्षों बाद २९३ ई० हो जाती है । सातवाहन प्रबन्ध में राजशेखर ने कालक्रम का तुलनात्मक वर्णन किया है कि महावीर की मृत्यु के ४७० वर्ष बाद ( तदनुसार ५२७ ई० पू० = ४७० + ५७ ई० पू० ) विक्रमादित्य राजा हुआ। राजशेखर कहता है कि तत्कालीन सातवाहन राजा उसी प्रतिपक्ष में उत्पन्न हुआ।' राजशेखर द्वारा विक्रमादित्य को प्रदत्त ५७ ई० पू० १. वही, पृ० ३६ व पृ० ४२ ।। २. वही, पृ० १२७ । ३. दे. कल्याणविजय : वीर निर्वाण संवत् और. जैन काल-गणना, ना० प्र० पत्रिका, भाग १०, सं० १९८६, पृ० ५८४ और आगे। ४. प्रको, पृ० ५३ ।। ५. "श्रीवीरे शिवं गते ४७० विक्रमार्को राजा तत्कालीनोऽयं सातवाहन स्तत्प्रतिपक्षत्वात् ।" विक्रमादित्य की ५७ ई० की तिथि के लिये दे. विक्रउ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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