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१४६] प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन दर्शन में कालक्रम की एक सुनिश्चित पद्धति को विकसित किया । राजशेखर के स्थूल कालक्रम का नमूना ग्रन्थारम्भ में प्राप्त होता है जहाँ उसने यह कहा है कि महावीर ने अपने समय में जनता को धनदान देकर सफल मनोरथ किया ।' जीवदेवसूरि प्रबन्ध में प्रबन्धकार महत्वपूर्ण सूचना देता है कि एक समय उज्जयिनी में विक्रमादित्य ने संवत्सर प्रवर्तन किया। कहीं-कहीं राजशेखर ने भिन्न-भिन्न घटनाओं के लिये कोई संवत्सर या तिथि न देकर 'सातवें दिन', 'सप्ताह मात्र', 'छठे मास', 'छः वर्ष की आयु' आदि की गोल-मोल संख्या स्थूल रूप से प्रयुक्त कर काल-मापन का प्रयास किया है ।।
राजशेखर चापोत्कट-वंश की शासनावधि की भी सही-सही गणना करता है। वह कहता है कि चापोत्कटवंश के नवराज आदि ७ राजाओं ने १९६ वर्षों तक गुजरात पर शासन किया। इस कालक्रम की पूष्टि मेरुतुङ्ग द्वारा प्रदत्त सुचना से हो जाती है, जहाँ लिखा है कि सातों राजाओं ने वि० सं०८०२ ( ७४५ ई० ) से वि० सं० ९९८ ( ९४१ ई० ) तक १९६ वर्ष शासन किया। इस प्रकार राजशेखर का यह कालक्रम भी सही प्रतीत होता है। राजशेखर ने काल-मापन का एक सामान्य प्रयास और किया है, जब वह कहता है कि श्रेष्ठिनी पद्मयशा चैत्यपूर्णिमा को उपवास किया करती थी। प्रबन्धकोश के अन्त में वह स्थूल रूप से कहता है कि वस्तुपाल और तेजपाल के क्रिया-कलाप अट्ठारह वर्षों तक चलते रहे। राजशेखर ने कालमापन में कभी-कभी 'अद्यपि' तथा 'एवं वर्तमाने काले' के भी ऐसे १. 'अर्थेन प्रथमं कृतार्थ मकरोद् यो वीरसंवत्सरे ।' प्रको, प० १ २. 'अयान्यदोञ्जयिन्यां विक्रमादित्येन वत्सर: प्रवर्तयितुमारेभे ।'
वही, पृ० ८ ३. दे. वही पृ० ३, ४, २२, २३, २६।। ४. 'इयं गुर्जरधरा वनराजप्रभृतिभिर्नरेन्द्रः सप्तमिश्चापोत्कटवंश्यः
षण्णवत्यधिकं शतं वर्षाणां भुक्ता ।' वही, पृ० १०१ ५. प्रचि, पृ० १४-१५; तथा दे० पाहिनाइजैसो, पृ० २०६ व आगे । ६. दे० प्रको, पृ० ५। ७. वही, पृ० १३० व पृ० १३२ ।
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